शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) का सप्तमी दिन देवी कालरात्रि की पूजा को समर्पित है। यह दिन विशेष रूप से बुरी शक्तियों और अकाल मृत्यु से सुरक्षा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। देवी कालरात्रि की पूजा विधि, मंत्र, और आरती का महत्व जानने के लिए यह आलेख पढ़ें।

Shardiya navratri 2024: सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व
Shardiya navratri 2024: सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व

इस खबर की महत्वपूर्ण बातें

  1. शारदीय नवरात्रि 2024: सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व और विधि
  2. शारदीय नवरात्रि 2024: देवी कालरात्रि की पूजा से पाएं मौत के भय से मुक्ति!
  3. क्या देवी कालरात्रि की पूजा सच में आपको बुरी शक्तियों से बचा सकती है? जानिए सच्चाई!

शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो पूरे भारत में अत्यंत भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह नौ दिनों तक चलता है, जिसमें हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के सातवें दिन, जिसे सप्तमी कहा जाता है, भक्त देवी कालरात्रि की पूजा करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवी कालरात्रि की आराधना करने से भक्तों को नकारात्मक ऊर्जा, मृत्यु और बुरी शक्तियों से रक्षा मिलती है।

कौन हैं देवी कालरात्रि?

देवी कालरात्रि दुर्गा का एक उग्र और रक्षक रूप मानी जाती हैं। वह दुर्गा के सातवें अवतार के रूप में पूजी जाती हैं और उन्हें शुभंकरी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है “शुभ देने वाली।” हालांकि उनका रूप भयानक है, लेकिन वह अपने भक्तों को सुरक्षा, शांति और शक्ति प्रदान करती हैं। देवी कालरात्रि का नाम रात के अंधकार और मृत्यु का प्रतीक है, और उन्हें काले रंग की, बिखरे बालों वाली, तीसरी आंख वाले रूप में चित्रित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनकी उपासना से सभी भय दूर हो जाते हैं और नकारात्मक शक्तियां समाप्त हो जाती हैं।

इसे भी पढ़ें –Shardiya Navratri 2024 के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी का पूजन, जानें पूजा विधि, मंत्र और महत्व

सप्तमी के दिन पूजा विधि

देवी कालरात्रि की पूजा की शुरुआत कलश स्थापन से होती है, जो एक पवित्र प्रक्रिया है जिसमें एक कलश स्थापित किया जाता है जो देवी का प्रतीक होता है। भक्त देवी को लाल फूल, फल, और मिठाई अर्पित करते हैं। पूजा के दौरान विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है जैसे “ॐ कालरात्र्यै नमः,” जो अकाल मृत्यु और अप्रत्याशित घटनाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। भक्त तिल के तेल से भरा दीपक जलाते हैं, जो अज्ञानता और अंधकार को दूर करने का प्रतीक होता है।

इस दिन का भोग गुड़ से बनाया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि इससे देवी कालरात्रि प्रसन्न होती हैं। कई घरों और मंदिरों में विशेष पूजा और कीर्तन का आयोजन किया जाता है, और शाम को आरती की जाती है, जो इस पूजा का मुख्य आकर्षण होता है।

देवी कालरात्रि की पूजा क्यों की जाती है?

देवी कालरात्रि की पूजा का उद्देश्य सभी प्रकार की बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा प्राप्त करना है। हिंदू पुराणों के अनुसार, देवी कालरात्रि असुरों का संहार करने वाली हैं, विशेष रूप से शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज, जिन्होंने देवताओं को आतंकित किया था। देवी कालरात्रि ने अपने उग्र रूप से इन दैत्यों का विनाश किया और रक्तबीज के रक्त को पी लिया ताकि और दैत्य उत्पन्न न हों।

ऐसा माना जाता है कि उनकी पूजा से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं, और अकाल मृत्यु, दुर्घटनाओं और अन्य विपत्तियों से सुरक्षा मिलती है। साथ ही, कालरात्रि की उपासना शनि ग्रह को शांत करने में भी सहायक मानी जाती है, जिससे शनि की बुरी दृष्टि का प्रभाव कम होता है।

इसे भी पढ़ें –शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024): चंद्रघंटा देवी की पूजा का महत्व और पूजा विधि

काशी के कालरात्रि मंदिर का महत्व

देवी कालरात्रि को समर्पित सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक वाराणसी (काशी) में स्थित है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में भक्त दूर-दूर से आकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर सुबह से देर रात तक खुला रहता है, और यहां की आरती एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। मान्यता है कि यहां की पूजा से भक्तों को जीवन की कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति मिलती है।

Shardiya navratri 2024: सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व
Shardiya navratri 2024: सप्तमी पर देवी कालरात्रि की पूजा का महत्व

काशी में स्थित है मां कालरात्रि का मंदिर यहा पर क्लिक करे

कालरात्रि की पूजा से जुड़ी कथाएं और मिथक

शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज के राक्षसों की कथा देवी कालरात्रि की पूजा के महत्व को और बढ़ा देती है। मान्यता है कि इन राक्षसों ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचाया था, जिसके बाद देवताओं ने मां पार्वती से मदद की गुहार लगाई। मां पार्वती ने कालरात्रि का रूप धारण कर इन राक्षसों का विनाश किया और ब्रह्मांड को तबाही से बचाया। देवी कालरात्रि की इस विजय को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है, जो नवरात्रि की मुख्य भावना है।

इसे भी पढ़ें –शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) : चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा का महत्व

कालरात्रि मंत्र और आरती

देवी कालरात्रि को समर्पित मंत्रों का जाप करने से शांति, सुरक्षा और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है। “ॐ कालरात्र्यै नमः” मंत्र को विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है जो जीवन से सभी नकारात्मकता को दूर करता है। भक्त कालरात्रि आरती भी गाते हैं:

कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय जय महाकाली

काल के मुंह से बचाने वाली 

दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा 

महा चंडी तेरा अवतारा 

पृथ्वी और आकाश पर सारा 

महाकाली है तेरा पसारा 

खंडा खप्पर रखने वाली 

दुष्टों का लहू चखने वाली 

कलकत्ता स्थान तुम्हारा 

सब जगह देखूं तेरा नजारा 

सभी देवता सब नर नारी 

गावे स्तुति सभी तुम्हारी 

रक्तदंता और अन्नपूर्णा 

कृपा करे तो कोई भी दुःख ना 

ना कोई चिंता रहे ना बीमारी 

ना कोई गम ना संकट भारी 

उस पर कभी कष्ट ना आवे 

महाकाली मां जिसे बचावे 

तू भी ‘भक्त’ प्रेम से कह 

कालरात्रि मां तेरी जय

यह आरती देवी की स्तुति करती है, जो अपने भक्तों को मृत्यु के भय से मुक्त करती हैं और उन्हें बुरी शक्तियों से बचाती हैं।

इसे भी पढ़ें –Shardiya Navratri 2024 : नवरात्रि का 5वां दिन आज, स्कंदमाता की पूजा, जानिए पूजन विधि, महत्व और मंत्र

नौ दिनों के उत्सव में माँ दुर्गा के नौ रूपों के अनुसार अलग-अलग भोग अर्पित किए जाते हैं। यहां हम आपको कुछ देवियों के प्रिय भोग के बारे में बता रहे हैं:

  1. माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) नवरात्रि के पहले दिन, माँ शैलपुत्री को विशेष रूप से पूजा जाता है। उनको सफेद रंग पसंद है और उनके भोग में गाय का घी अर्पित किया जाता है।
  2. माँ ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) दूसरे दिन, माँ ब्रह्मचारिणी को पूजा जाता है और उनको शक्कर और पंचामृत का भोग अर्पित किया जाता है।
  3. माँ चंद्रघंटा तीसरे दिन, माँ चंद्रघंटा को दूध का भोग अर्पित किया जाता है।
  4. माँ कुष्मांडा चौथे दिन, माँ कुष्मांडा को मालपुए का भोग अर्पित किया जाता है।
  5. माँ स्कंदमाता पांचवे दिन, माँ स्कंदमाता को केले का भोग अर्पित किया जाता है।
  6. माँ कात्यायनी छठे दिन, माँ कात्यायनी को मीठे पान या लौकी का भोग अर्पित किया जाता है।
  7. माँ कालरात्रि सातवे दिन, माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग अर्पित किया जाता है।
  8. माँ महागौरी आठवे दिन, माँ महागौरी को नारियल का भोग अर्पित किया जाता है।
  9. माँ सिद्धदात्री नौवे दिन, माँ सिद्धदात्री को चना मसाला या हलवा पूड़ी का भोग अर्पित किया जाता है।

पूछे जाने वाले प्रश्न 

1.शारदीय नवरात्रि क्या है?
शारदीय नवरात्रि नौ दिन तक चलने वाला हिंदू त्योहार है, जो मां दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है और भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है।

2.सप्तमी के दिन देवी कालरात्रि की पूजा क्यों की जाती है?
देवी कालरात्रि अज्ञानता, भय और बुराई का नाश करने वाली देवी हैं। सप्तमी के दिन उनकी पूजा करने से भक्तों को बुरी शक्तियों और अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है।

3.देवी कालरात्रि को क्या अर्पित किया जाता है?
भक्त देवी कालरात्रि को गुड़, लाल फूल, फल और तिल के तेल के दीपक अर्पित करते हैं। यह माना जाता है कि इन अर्पणों से देवी प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं।

4.प्रसिद्ध कालरात्रि मंदिर कहां स्थित है?
प्रसिद्ध कालरात्रि मंदिर वाराणसी (काशी) में स्थित है, जो भारत के सबसे पवित्र शहरों में से एक है।

5.देवी कालरात्रि की पूजा के क्या लाभ हैं?
देवी कालरात्रि की पूजा से सभी बाधाएं दूर होती हैं, दुर्घटनाओं और मृत्यु से सुरक्षा मिलती है, और शनि ग्रह के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है।

इसे भी पढ़ें –Shardiya Navratri 2024 : नवरात्रि के छठे दिन होती है मां कात्यायनी की पूजा, जानिए पूजन विधि, महत्व और मंत्र

हिंदी में धार्मिक त्योहार और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले  महाकालटाइम्स.कॉम पर पढ़ें.

अगर आपको हमारी स्टोरी से जुड़े सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के नीचे  दिये गए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर करना न भूलें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए महाकालटाइम्स  से जुड़े रहें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here