शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) के तीसरे दिन, चंद्रघण्टा (Maa Chandraghanta) देवी की पूजा का महत्व और विधान जानिए। यहाँ आध्यात्मिक अर्थ और उससे जुड़े गहरे संदेश को खोजें। शारदीय नवरात्रि हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जो पूरे भारत में भक्तिभाव के साथ मनाया जाता है। इस पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है, जिनमें से हर रूप अलग गुणों और शक्तियों का प्रतीक है।
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- शारदीय नवरात्रि 2024 का तीसरा दिन: चंद्रघंटा देवी की पूजा का महत्व और विधि
- शारदीय नवरात्रि 2024: चंद्रघंटा देवी की छुपी शक्तियों का रहस्य!
- क्या चंद्रघंटा देवी की पूजा ही शारदीय नवरात्रि 2024 में सच्चा सुख पाने की कुंजी है?
चंद्रघंटा देवी कौन हैं?
चंद्रघंटा देवी को उनके शांतिपूर्ण लेकिन शक्तिशाली रूप के लिए जाना जाता है। उनके नाम में “चंद्र” का अर्थ चाँद और “घंटा” का अर्थ घंटी होता है, जो उनके मस्तक पर सुशोभित अर्धचंद्राकार घंटी को दर्शाता है। वे सिंह पर सवार होती हैं और उनके दस हाथ होते हैं, जिनमें हर हाथ में अलग-अलग शस्त्र होते हैं, जो उनकी शक्ति और वीरता का प्रतीक हैं। उनका यह शांतिपूर्ण रूप शांति की ओर इशारा करता है, फिर भी वे शक्तिशाली हैं और असुरों का नाश करने में सक्षम हैं।
चंद्रघंटा देवी का यह संयमित और शक्तिशाली रूप उन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में शांति और साहस की तलाश करते हैं। उनकी पूजा से जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता मिलती है।
चंद्रघंटा पूजा का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि के तीसरे दिन का महत्व यह है कि यह भक्त की आध्यात्मिक यात्रा के उस चरण का प्रतिनिधित्व करता है जहाँ वे अपनी आंतरिक शांति की खोज करते हैं, भय पर विजय प्राप्त करने के बाद। चंद्रघंटा देवी (Maa Chandraghanta) की कृपा से भक्त अपने पिछले संकटों से मुक्त होते हैं और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त होते हैं।
इस पूजा के माध्यम से भक्त अपनी मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलित करने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
चंद्रघंटा देवी की पूजा विधि
चंद्रघंटा देवी की पूजा में कुछ विशेष विधियाँ होती हैं जिन्हें आसानी से किया जा सकता है, लेकिन उनका आध्यात्मिक महत्व गहरा होता है। यहाँ पूजा की प्रक्रिया है:
- सुबह की तैयारी: दिन की शुरुआत स्नान करके और स्वच्छ वस्त्र धारण करके करें। पूजा के लिए साफ स्थान पर देवी चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- शुद्धिकरण: गंगा जल का उपयोग करके देवी की प्रतिमा या चित्र और पूजा स्थल को शुद्ध करें।
- प्रसाद (नैवेद्य): देवी को फूल, धूप, और दीपक अर्पित करें। दूध, दूध से बने मिष्ठान और सफेद फूल, विशेषकर चमेली या कमल, देवी को अर्पित करें।
- मंत्र जाप: पूजा के दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:
- ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः (ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः)
- ध्यान और प्रार्थना: देवी के शांतिपूर्ण लेकिन साहसी रूप का ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करें।
- आरती: पूजा समाप्त करने के बाद देवी की आरती करें और भक्ति गीत या स्तुति गाएं।
चंद्रघंटा देवी और वैवाहिक जीवन
चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) देवी का एक विशेष महत्व उनके द्वारा प्रदान किए गए वैवाहिक सुख के लिए है। यह माना जाता है कि उनकी पूजा से वैवाहिक जीवन में शांति और स्थिरता आती है। विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ यह पूजा अपने वैवाहिक जीवन में प्रेम और समृद्धि लाने के लिए करती हैं। दंपत्ति इस पूजा को एक साथ करके अपने संबंधों को और भी मजबूत बनाते हैं।
प्रयागराज में चंद्रघंटा देवी का प्रसिद्ध मंदिर
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में चंद्रघंटा देवी का एक प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर चौक क्षेत्र में स्थित है और अपने पौराणिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यह मंदिर पुराणों में वर्णित है और यहाँ माँ दुर्गा के नौ रूपों की शक्तियाँ विराजमान हैं, जो भक्तों को अद्वितीय आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
प्रयागराज में है मां चंद्रघण्टा का मंदिर यहा पर क्लिक करे
यह मंदिर भक्तों के शारीरिक और मानसिक कष्टों को दूर करने के लिए जाना जाता है, और विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहाँ भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
पौराणिक कथा: महिषासुर और चंद्रघंटा देवी
हिन्दू पुराणों के अनुसार, चंद्रघंटा देवी ने महिषासुर के विनाश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब महिषासुर ने देवताओं पर आक्रमण किया, तो भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने मिलकर माँ दुर्गा का सृजन किया और उन्हें शस्त्र प्रदान किए।
चंद्रघंटा देवी दुर्गा के उन भयावह रूपों में से एक थीं, जो अपनी वीरता और शक्ति के लिए जानी जाती हैं। सिंह पर सवार होकर और शस्त्रों से लैस होकर उन्होंने महिषासुर से युद्ध किया और अंततः उसका वध कर शांति की स्थापना की। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है।
चंद्रघंटा देवी के लिए मंत्र और प्रार्थना
यहाँ कुछ मंत्र दिए गए हैं जो चंद्रघंटा देवी की पूजा के दौरान उच्चारित किए जाते हैं:
- ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः – इस मंत्र का जाप करने से शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
- अह्लाद करिणी चन्द्रभूषणा हस्ते पद्मधारिणी, घंटा शूल हलानि देवी दुष्ट भाव विनाशिनी – यह प्रार्थना देवी के रूप और गुणों का वर्णन करती है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए उनकी कृपा माँगती है।
मां चंद्रघंटा आरती
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे सभी काम।
चंद्र समान तुम शीतल दाती।चंद्र तेज किरणों में समाती।
क्रोध को शांत करने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाएं।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योति जलाएं।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटूं महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।
चंद्रघंटा देवी की पूजा के लाभ
- बुरी शक्तियों से सुरक्षा: देवी की घंटी की ध्वनि नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है और भक्तों को हानिकारक प्रभावों से बचाती है।
- साहस और वीरता: चंद्रघंटा देवी की पूजा से भय दूर होता है और साहस प्राप्त होता है।
- शांति और सद्भावना: देवी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में शांति और सद्भावना आती है, विशेषकर वैवाहिक जीवन में।
- आध्यात्मिक विकास: उनकी पूजा से भक्तों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की शक्ति प्राप्त होती है और वे सांसारिक परेशानियों से ऊपर उठकर आत्मिक शांति प्राप्त करते हैं।
इस शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) में तीसरे दिन चंद्रघंटा देवी की पूजा अवश्य करें। उनकी कृपा से आपको शांति, समृद्धि और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होगी। इस पूजा के आध्यात्मिक और व्यावहारिक महत्व को समझें और भक्ति के माध्यम से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करें।
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नौ दिनों के उत्सव में माँ दुर्गा के नौ रूपों के अनुसार अलग-अलग भोग अर्पित किए जाते हैं। यहां हम आपको कुछ देवियों के प्रिय भोग के बारे में बता रहे हैं:
- माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) नवरात्रि के पहले दिन, माँ शैलपुत्री को विशेष रूप से पूजा जाता है। उनको सफेद रंग पसंद है और उनके भोग में गाय का घी अर्पित किया जाता है।
- माँ ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) दूसरे दिन, माँ ब्रह्मचारिणी को पूजा जाता है और उनको शक्कर और पंचामृत का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ चंद्रघंटा तीसरे दिन, माँ चंद्रघंटा को दूध का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कुष्मांडा चौथे दिन, माँ कुष्मांडा को मालपुए का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ स्कंदमाता पांचवे दिन, माँ स्कंदमाता को केले का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कात्यायनी छठे दिन, माँ कात्यायनी को मीठे पान या लौकी का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कालरात्रि सातवे दिन, माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ महागौरी आठवे दिन, माँ महागौरी को नारियल का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ सिद्धदात्री नौवे दिन, माँ सिद्धदात्री को चना मसाला या हलवा पूड़ी का भोग अर्पित किया जाता है।
पूछे जाने वाले प्रश्न
1.चंद्रघंटा देवी का रूप किसका प्रतीक है? चंद्रघंटा देवी का रूप शांति और शक्ति का प्रतीक है। उनका शांत चेहरा और योद्धा रूप शांति और साहस का संतुलन दर्शाता है।
2.चंद्रघंटा देवी की पूजा से विवाहित जोड़ों को क्या लाभ होता है? चंद्रघंटा देवी की पूजा से विवाहित जीवन में शांति, स्थिरता और आपसी समझ बढ़ती है।
3.प्रसिद्ध चंद्रघंटा देवी का मंदिर कहाँ स्थित है? प्रसिद्ध चंद्रघंटा देवी का मंदिर प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
4.नवरात्रि के दौरान चंद्रघंटा देवी को क्या अर्पित किया जाता है? भक्त देवी को दूध से बने मिष्ठान, चमेली के फूल और सफेद वस्त्र अर्पित करते हैं।
5.”ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः” मंत्र का क्या अर्थ है? यह मंत्र देवी चंद्रघंटा को प्रणाम करते हुए शांति और समृद्धि की प्राप्ति के लिए उच्चारित किया जाता है।
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