शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri 2024) के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व और विधि समझें। जानें कैसे मां की आराधना से सभी संकटों से मुक्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। कानपुर के घाटमपुर मंदिर की विशेषताएं और मां कूष्मांडा का शक्तिशाली मंत्र भी जानें।
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- शारदीय नवरात्रि 2024: जानें मां कूष्मांडा की पूजा से कैसे मिलेगी आपको सुख-समृद्धि!
- शारदीय नवरात्रि में मां कूष्मांडा की आराधना से होगा चमत्कार: जानें कैसे!
- मां कूष्मांडा की कृपा से सब होंगे धन्य: जानिए पूजा विधि और मंत्र!
शारदीय नवरात्रि भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह नौ दिनों का पर्व माँ दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की आराधना के लिए समर्पित होता है। नवरात्रि के चौथे दिन भक्त माँ कूष्माण्डा की पूजा करते हैं, जो सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने वाली देवी मानी जाती हैं।
चौथे दिन का महत्व: माँ कूष्माण्डा की आराधना
माँ कूष्माण्डा, जो माँ दुर्गा के नौ रूपों में से चौथी स्वरूप हैं, उनकी पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, माँ कूष्माण्डा को सृष्टि की रचयिता माना जाता है। उनके नाम में “कू” का अर्थ है “छोटा”, “उष्म” का अर्थ है “ऊष्मा” या “गरमी” और “अंड” का अर्थ है “ब्रह्मांडीय अंडा”, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की सृष्टि की थी।
माँ कूष्माण्डा की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट और मानसिक तनाव समाप्त होते हैं। कहा जाता है कि उनकी कृपा से व्यक्ति को लंबी आयु, स्वास्थ्य, और सफलता प्राप्त होती है। माँ कूष्माण्डा आठ भुजाओं वाली देवी के रूप में पूजी जाती हैं, जिनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश और माला होती है। उनके वाहन सिंह हैं, जो शक्ति और साहस का प्रतीक हैं।
माँ कूष्माण्डा की पूजा विधि और अनुष्ठान
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। नीचे दिए गए चरण माँ कूष्माण्डा की पूजा के लिए पारंपरिक विधि बताते हैं:
- शुद्धिकरण और तैयारी: सुबह जल्दी स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को शुद्ध करें। पूजा की वेदी को फूलों, अगरबत्ती और दीपों से सजाया जाता है।
- पूजन सामग्री: माँ कूष्माण्डा की पूजा में कुमकुम, मौली, पंचामृत, चावल, पान के पत्ते, नारियल आदि चढ़ाए जाते हैं। माँ कूष्माण्डा को सफेद कद्दू (जिसे कूष्माण्ड भी कहा जाता है) का विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जो उन्हें अत्यधिक प्रिय है।
- मंत्र जाप: माँ कूष्माण्डा की आराधना के दौरान उनके विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। सबसे प्रसिद्ध मंत्र है:
- दुर्गा चालीसा का पाठ: माँ कूष्माण्डा की पूजा के बाद दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है और फिर आरती गाई जाती है। इससे मानसिक शांति और शक्ति प्राप्त होती है।
- अंतिम आरती और प्रसाद वितरण: पूजा समाप्त होने पर घी या कपूर से आरती की जाती है। यह माना जाता है कि आरती से घर के वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है।
माँ कूष्माण्डा की कृपा का महत्व
माँ कूष्माण्डा को सृष्टि की रचयिता माना जाता है और उनकी कृपा से जीवन में अंधकार दूर होता है और प्रकाश आता है। उनकी पूजा से रोग, शोक, और दुःखों का अंत होता है। जो भी भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी पूजा करता है, उसे समृद्धि, ज्ञान, और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यह भी माना जाता है कि जो अविवाहित कन्याएँ माँ कूष्माण्डा की पूजा करती हैं, उन्हें उत्तम जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाएँ इस दिन माँ की पूजा करके परिवार के सुख-समृद्धि और लंबी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
माँ कूष्माण्डा के प्रसिद्ध मंदिर
माँ कूष्माण्डा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर उत्तर प्रदेश के घाटमपुर, कानपुर जिले में स्थित है। यह एशिया का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है और नवरात्रि के दौरान यहाँ हज़ारों श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर में माँ की कृपा से अनेक चमत्कारिक घटनाओं का अनुभव किया जाता है।
कानपुर ज़िले के घाटमपुर है मां कूष्मांडा का मंदिर यहा पर क्लिक करे
यहाँ की एक अनोखी परंपरा है, जिसमें देवी की प्रतिमा के चरणों का जल आँखों में लगाने से नेत्र रोग ठीक हो जाते हैं। इस मंदिर की मान्यता इतनी गहरी है कि जो लोग ठीक होते हैं, वे अपनी श्रद्धा स्वरूप सोने या चाँदी की आँखों की प्रतिकृति अर्पित करते हैं।
माँ कूष्माण्डा से जुड़ी पौराणिक कथा
हिंदू मान्यता के अनुसार, जब सृष्टि में सिर्फ अंधकार था, तब माँ कूष्माण्डा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की सृष्टि की। उनका तेज और ऊर्जा पूरे ब्रह्मांड में फैल गई, जिससे जीवन का उदय हुआ।
माँ कूष्माण्डा की शक्ति अनंत है और उन्हें सृष्टि की रचयिता के रूप में देखा जाता है। उनकी मुस्कान यह संदेश देती है कि सकारात्मकता और प्रसन्नता ही जीवन में विकास और सफलता के मुख्य साधन हैं।
शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन माँ कूष्माण्डा की पूजा अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। उनकी आराधना से भक्तों के सारे दुख-दर्द मिट जाते हैं और वे सफलता की नई ऊंचाइयों को छूते हैं।
मां कूष्मांडा का मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
मां कूष्मांडा आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुंचती हो मां अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
माँ कूष्माण्डा की आराधना से प्राप्त होने वाले लाभ
माँ कूष्माण्डा की आराधना करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से कई लाभ प्राप्त होते हैं। भक्तों के अनुसार, माँ की कृपा से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है, और व्यक्ति को लंबे जीवन का आशीर्वाद मिलता है। उनके विशेष रूप से जिन लाभों का उल्लेख किया जाता है, वे इस प्रकार हैं:
- आध्यात्मिक जागृति: माँ कूष्माण्डा की आराधना से आत्मबल और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। यह पूजा जीवन में सकारात्मकता और शांति लाती है।
- स्वास्थ्य और लंबी उम्र: जो लोग श्रद्धा और विश्वास से माँ कूष्माण्डा की पूजा करते हैं, उन्हें शारीरिक स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। माँ की कृपा से मानसिक और शारीरिक परेशानियाँ दूर होती हैं।
- सुख-समृद्धि: माँ कूष्माण्डा की कृपा से परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है। आर्थिक समस्याओं का समाधान होता है और व्यापार या नौकरी में प्रगति होती है।
- रोगों से मुक्ति: माँ कूष्माण्डा को विशेष रूप से स्वास्थ्य के लिए पूजनीय माना गया है। उनकी पूजा करने से रोग दूर होते हैं और स्वास्थ्य बेहतर होता है।
माँ कूष्माण्डा की पूजा से जुड़ी विशेष बातें
माँ कूष्माण्डा की पूजा से पहले कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है ताकि पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त हो सके। इन बातों का पालन करने से माँ का आशीर्वाद जल्द मिलता है:
- सात्विक भोजन: माँ कूष्माण्डा की आराधना के दौरान सात्विक भोजन का सेवन किया जाना चाहिए। नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक अन्न छोड़कर फलाहार करने का विशेष महत्व है।
- शुद्धता: माँ की पूजा के लिए मन और शरीर की शुद्धता अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा करनी चाहिए।
- भक्ति और श्रद्धा: माँ कूष्माण्डा की पूजा केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए। सच्चे मन से की गई पूजा का प्रभाव अधिक होता है।
- ध्यान और मंत्र जाप: माँ की पूजा के समय ध्यान और मंत्र जाप विशेष फलदायी माने जाते हैं। इससे मन की शांति और मानसिक बल प्राप्त होता है।
माँ कूष्माण्डा की कृपा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन
माँ कूष्माण्डा की पूजा से भक्तों के जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। यह माना जाता है कि माँ की आराधना से व्यक्ति के चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का आवरण बनता है, जिससे जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्नति होती है।
जो भक्त माँ कूष्माण्डा की सच्चे मन से पूजा करते हैं, वे जीवन में स्थिरता और संतुलन प्राप्त करते हैं। उनका स्वास्थ्य, परिवार, और व्यापार या करियर सभी क्षेत्रों में उन्नति होती है। माँ कूष्माण्डा की कृपा से जीवन में आने वाले कष्टों का अंत होता है और व्यक्ति एक सफल और खुशहाल जीवन व्यतीत करता है।
नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा से जुड़ी कुछ विशेष परंपराएँ
भारत के विभिन्न हिस्सों में नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा को विशेष रूप से अनोखे तरीके से मनाया जाता है। जैसे:
- गुजरात में गरबा: माँ कूष्माण्डा की पूजा के साथ ही गुजरात में गरबा नृत्य का विशेष महत्व होता है। माँ की आराधना के बाद भक्त गरबा खेलकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
- पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा: पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा विशेष धूमधाम से मनाई जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ की प्रतिमाओं का विशेष श्रृंगार किया जाता है और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- उत्तर भारत में कन्या पूजन: उत्तर भारत में नवरात्रि के चौथे दिन से कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। माँ कूष्माण्डा को प्रसन्न करने के लिए छोटी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है और उन्हें देवी स्वरूप माना जाता है।
माँ कूष्माण्डा की कृपा से प्राप्त हुए अनुभव
कई भक्तों ने माँ कूष्माण्डा की पूजा के बाद अपने जीवन में चमत्कारी परिवर्तन अनुभव किए हैं। कुछ लोगों का कहना है कि माँ की कृपा से उनकी गंभीर बीमारियाँ ठीक हो गईं, जबकि अन्य लोग यह मानते हैं कि माँ की पूजा से उनके व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
नौ दिनों के उत्सव में माँ दुर्गा के नौ रूपों के अनुसार अलग-अलग भोग अर्पित किए जाते हैं। यहां हम आपको कुछ देवियों के प्रिय भोग के बारे में बता रहे हैं:
- माँ शैलपुत्री (Maa Shailputri) नवरात्रि के पहले दिन, माँ शैलपुत्री को विशेष रूप से पूजा जाता है। उनको सफेद रंग पसंद है और उनके भोग में गाय का घी अर्पित किया जाता है।
- माँ ब्रह्मचारिणी (Maa Brahmacharini) दूसरे दिन, माँ ब्रह्मचारिणी को पूजा जाता है और उनको शक्कर और पंचामृत का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ चंद्रघंटा तीसरे दिन, माँ चंद्रघंटा को दूध का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कुष्मांडा चौथे दिन, माँ कुष्मांडा को मालपुए का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ स्कंदमाता पांचवे दिन, माँ स्कंदमाता को केले का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कात्यायनी छठे दिन, माँ कात्यायनी को मीठे पान या लौकी का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ कालरात्रि सातवे दिन, माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ महागौरी आठवे दिन, माँ महागौरी को नारियल का भोग अर्पित किया जाता है।
- माँ सिद्धदात्री नौवे दिन, माँ सिद्धदात्री को चना मसाला या हलवा पूड़ी का भोग अर्पित किया जाता है।
पूछे जाने वाले प्रश्न
1. शारदीय नवरात्रि क्या है? शारदीय नवरात्रि नौ दिनों का हिंदू पर्व है, जो माँ दुर्गा की आराधना के लिए मनाया जाता है। यह आश्विन महीने में (सितंबर-अक्टूबर) आता है और शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है।
2. माँ कूष्माण्डा की पूजा का क्या महत्व है? माँ कूष्माण्डा की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है, और इससे जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ दूर होती हैं। यह पूजा सफलता, समृद्धि और रोगमुक्त जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
3. माँ कूष्माण्डा को क्या भोग अर्पित करना चाहिए? माँ कूष्माण्डा को विशेष रूप से सफेद कद्दू, कुमकुम, पान के पत्ते और मौली अर्पित की जाती है।
4. माँ कूष्माण्डा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर कहाँ है? माँ कूष्माण्डा का सबसे प्रसिद्ध मंदिर उत्तर प्रदेश के घाटमपुर में स्थित है, जहाँ नवरात्रि के दौरान हज़ारों श्रद्धालु माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
5. माँ कूष्माण्डा अपने भक्तों को कैसे आशीर्वाद देती हैं? माँ कूष्माण्डा अपने भक्तों के सभी दुःखों को दूर करती हैं और उन्हें सफलता, समृद्धि, और शांति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
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