Lok Sabha Elections 2024 : नेहरू से मोदी तक भारतीय लोकसभा चुनावों का रोमांचक इतिहास खोजें
जब देश की जनता 16 मार्च को फिर से चुनावी चक्र की शुरुआत के लिए तैयार हो रही है, तो लोकसभा चुनावों का महत्व और बढ़ जाता है। लगभग 97 करोड़ लोग 543 लोकसभा सीटों पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। 2019 के मुकाबले, इस बार देश में मतदाताओं की संख्या में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विशेष रूप से 18 से 29 साल के आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या में 2 करोड़ का इजाफा हुआ है।
Lok Sabha Elections 2024 : नेहरू से मोदी तक भारतीय लोकसभा चुनावों का रोमांचक इतिहास खोजें
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- लोकसभा चुनाव का इतिहास: देश के लोकतंत्र में महत्वपूर्ण मोड़
- लोकसभा चुनाव का इतिहास: राजनीति के इस दिग्गज कार्यक्रम का खुलासा!
- लोकसभा चुनाव का इतिहास: क्या होगा अगले चुनावों में देश का भविष्य?
भारत का लोकतंत्र विश्व में अपनी महत्ता को बढ़ाता है। चुनावी प्रक्रिया देश के नागरिकों को उनके नेताओं का चयन करने का अवसर प्रदान करती है और इसे लोकसभा चुनावों के इतिहास के माध्यम से समझना महत्वपूर्ण है। इन चुनावों का इतिहास गहराई से प्रयाग करने से हमें देश के राजनीतिक परिवेश के बदलाव की समझ मिलती है।
आज के दिन, जब लोकसभा चुनावों के 18वें संस्करण का आयोजन हो रहा है, हमें याद दिलाना चाहिए कि पहले चुनाव से लेकर आज के मोदी लहर तक का सफर कैसा रहा है। पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, जो इस देश के राजनीतिक मानचित्र में एक महत्वपूर्ण कदम था।
इन सभी चुनावों में, मतदाताओं की संख्या में वृद्धि और उनके प्रतिनिधियों का चयन देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस संदर्भ में, यहां लोकसभा चुनावों के इतिहास को जानने के लिए इस साल के चुनाव को एक और दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया जा रहा है। चुनाव आयोजन के पहले दिन के माध्यम से हमें देश के राजनीतिक लड़ाई में और कितना गहरा अनुभव है, और किस तरह से यह चुनाव देश के भविष्य को प्रभावित करेगा, यह सभी चीजें बताई जा सकती हैं।
इसी प्रकार, यह आंकड़े और तथ्य दर्शाते हैं कि लोकसभा चुनावों का इतिहास देश के लिए कितना महत्वपूर्ण है, और यह हमें दिखाता है कि देश की राजनीतिक प्रक्रिया कितनी विकसित है।
पहला लोकसभा चुनाव (1952)
1952 में पहले लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया था। इस चुनाव में 26 राज्यों में कुल 489 सीटें थीं। कांग्रेस ने इस चुनाव में 364 सीटें जीतकर सरकार बनाई। पंडित जवाहरलाल नेहरू पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने। इस लोकसभा का गठन 17 अप्रैल 1952 को हुआ और इसने 4 अप्रैल 1957 को अपना कार्यकाल पूरा किया।
दूसरा लोकसभा चुनाव (1957)
1957 में दूसरे लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया। इस चुनाव में भी कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। पंडित जवाहरलाल नेहरू फिर से प्रधानमंत्री बने। यह चुनाव, ‘राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956’ के लागू होने के बाद होने वाला पहला चुनाव था।
तीसरा लोकसभा चुनाव (1962)
1962 में तीसरे लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया। इस चुनाव में भी कांग्रेस ने बहुमत से जीत हासिल की। पंडित जवाहरलाल नेहरू दोबारा प्रधानमंत्री बने।
चौथा लोकसभा चुनाव (1967)
1967 में चौथे लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया। इस बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार में कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बन गईं। इंदिरा गांधी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं।
पांचवा लोकसभा चुनाव (1971)
1971 में पांचवे लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया। इस चुनाव में कांग्रेस फिर से बहुमत से जीत हासिल की। इंदिरा गांधी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं।
सातवा लोकसभा चुनाव (1980)
1980 में सातवे लोकसभा चुनाव का आयोजन किया गया। इस चुनाव में कांग्रेस फिर से बहुमत से जीत हासिल की। इंदिरा गांधी चौथी बार प्रधानमंत्री बनीं।
आठवीं लोकसभा चुनाव (1984)
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी सहानुभूति लहर के कारण भारी जीत के साथ सत्ता में आई और उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस ने 514 में से 414 सीटें जीतीं।
नौवां लोकसभा चुनाव (1989)
कांग्रेस को इस चुनाव में बोफोर्स घोटाले, पंजाब में बढ़ते आतंकवाद और लिट्टे-श्रीलंकाई सरकार के बीच गृह युद्ध के कारण सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा। लोकसभा की 525 सीटों के लिए 22 नवंबर और 26 नवंबर 1989 को दो चरणों में चुनाव हुए। इस चुनाव में पहली बार लोकसभा में त्रिशंकु की स्थिति बनी, जिसमें जिसमें कांग्रेस ने 197 सीटें, जनता दल ने 143 और बीजेपी ने 85 सीटें जीतीं।
जनता दल ने बीजेपी और वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनाई। वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। 1990 में चन्द्रशेखर ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी जनता पार्टी बनाई। वह 11वें प्रधान मंत्री बने। हालांकि 6 मार्च 1991 को उन्हें भी इस्तीफा देना पड़ा।
10वीं लोकसभा चुनाव (1991)
1991 के आम चुनाव से पहले लिट्टे ने राजीव गांधी की हत्या कर दी। मंडल आयोग की रिपोर्ट और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद चुनाव के दो प्रमुख मुद्दे बन गए। वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करते हुए सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27% आरक्षण दिया। वहीं दूसरी ओर राम मंदिर के मुद्दे पर देश में कई दंगे हुए और मतदाताओं का जाति और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण हुआ। किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका। कांग्रेस 244 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि बीजेपी ने 120 सीटें जीतीं और जनता दल 59 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। कांग्रेस के पीवी नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
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— ANI Digital (@ani_digital) March 16, 2024
11वीं लोकसभा चुनाव (1996)
कुल 543 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने 161 सीटें, कांग्रेस ने 140 और जनता दल ने 46 सीटें जीतीं। क्षेत्रीय दल नई ताकत बनकर उभरने लगे और उन्होंने कुल 129 सीटें जीत लीं। इनमें टीडीपी, शिवसेना और डीएमके प्रमुख दल थे। राष्ट्रपति ने बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जिसने गठबंधन बनाने का प्रयास किया। हालांकि वे ज्यादा दिन तक नहीं टिक सके और अटल बिहारी वाजपेयी को 13 दिन में ही पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद एचडी देवेगौड़ा प्रधान मंत्री बन गए और वह 18 महीने तक रहे। बाद में उन्हें भी पद छोड़ना पड़ा और आईके गुजराल देश के नए पीएम बने।
12वीं लोकसभा चुनाव (1998)
543 लोकसभा सीटों में से 182 सीटों पर जीत के साथ BJP सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस ने 141 और अन्य क्षेत्रीय दलों ने 101 सीटें जीतीं। बीजेपी ने अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार का गठन किया। अटल बिहारी वाजपेई दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार नहीं चल सकी और AIDMA के समर्थन वापस लेने के बाद उन्हें 13 महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा।
13वीं लोकसभा चुनाव (1999)
कारगिल युद्ध के बीच बीजेपी 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस को 114 सीटें ही मिल पाई। क्षेत्रीय पार्टियों ने 158 सीटों के साथ अच्छा प्रदर्शन किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
14वीं लोकसभा चुनाव (2004)
इस चुनाव में कांग्रेस ने सोनिया गांधी की अगुआई में सभी को हैरान करते हुए सत्ता में वापसी। कांग्रेस की अगुआई वाले गठबंधन ने 543 में से 335 सीटों पर जीत हासिल की। इस गठंधन में बसपा, सपा, एमडीएमके, लोक जनशक्ति पार्टी आदि शामिल थीं और लेफ्ट पार्टियों का इसे बाहर से समर्थन था। चुनाव बाद बने इसे गठंधन को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) कहा गया। चुनाव के बाद सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर सभी को चौंका दिया था। बाद में पार्टी ने उनकी जगह मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना।
15वीं लोकसभा चुनाव (2009)
कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए ने कृषि लोन माफ करने के साथ-साथ सूचना का अधिकार और मनरेगा जैसी योजनाएं शुरू की। चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं और भाजपा ने 116 सीटें हासिल कीं जबकि क्षेत्रीय दलों ने 146 सीटें जीतीं। मनमोहन सिंह ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
16वीं लोकसभा चुनाव (2014)
यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में कई भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इसमें 2जी, कोयला ब्लॉक, आदर्श सोसायटी और कॉमनवेल्थ स्कैम आदि शामिल थे। इस बीच बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को विकास के चेहरे के रूप में पेश किया। बीजेपी ने इस चुनाव में अपने दम पर 282 सीटों के साथ जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 44 सीटों के साथ अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया। AIDMK, AITC और BJD ने क्रमश: 37, 34 और 20 सीटें जीतीं। बीजेपी और उसके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटें और राजस्थान में सभी 25 सीटें जीतीं।
17वीं लोकसभा चुनाव (2019)
बीजेपी ने ‘मोदी लहर’ में 303 सीटें जीतकर अपना अबतक का सबसे बेस्ट प्रदर्शन किया। वहीं NDA को कुल करीब 350 सीटें मिली। जबकि कांग्रेस को 52 सीटों के साथ एक और करारी हार का सामना करना पड़ा। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में लगातार दो बार एक ही पार्टी से बहुमत हासिल कर पीएम बनने वाले तीसरे व्यक्ति बन गए। इस चुनाव में सिर्फ हिंदी पट्टी ही नहीं, बल्कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी अच्छी सीटें निकालीं।
पूछे जाने वाले प्रश्न
- लोकसभा चुनावों का महत्व क्या है? लोकसभा चुनाव भारतीय लोकतंत्र में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केंद्र सरकार की रचना तय करता है।
- लोकसभा चुनाव कितने समय पर होते हैं? लोकसभा चुनाव आमतौर पर हर पांच साल में होते हैं, यहां तक कि यदि पहले नहीं विघटित होते हैं।
- लोकसभा की भारतीय लोकतंत्र में क्या भूमिका है? लोकसभा, संसद का निचला सदन, कानून बनाने, बजटीय निर्णय और सरकार के ऊपर निगरानी का महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत में कितनी लोकसभा सीटें हैं? भारत को 543 लोकसभा सीटों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक लोकसभा सीट पर प्रतिनिधि का चयन होता है।
- लोकसभा चुनावों में मतदाताओं की पात्रता क्या है? 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक मतदान के लिए पात्र हैं, मतदाता बनने के लिए नामांकित होना आवश्यक है।
- भारतीय राजनीति में ‘मोदी लहर’ का क्या महत्व है? ‘मोदी लहर’ का महत्व उस समय था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने 2014 लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व लोकप्रियता और चुनावी सफलता हासिल की।
- स्वतंत्रता के बाद भारतीय राजनीति कैसे बदली है? स्वतंत्रता के बाद, भारतीय राजनीति एक-पार्टी प्रबल प्रणाली से बहु-पार्टी लोकतंत्र में परिणामित हो गई है, जिसमें विचारधारा की विविधता और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का व्यापक प्रकार है।
- भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की क्या भूमिका है? क्षेत्रीय दल विशेष राज्यों या क्षेत्रों की भाषा, सांस्कृतिक और सामाजिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।
- भारतीय मतदाताओं के व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? भारतीय मतदाताओं का व्यवहार जाति, धर्म, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शासन की प्रदर्शनकारिता, और नेतृत्व की प्रतिभा जैसे कारकों के अधीन होता है।
- भारत में चुनावी प्रक्रिया कैसे लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है? पहले पास-से-पास मतदान प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि प्रतियोगी उम्मीदवार जो अपने संविधानके जिलों में सबसे अधिक मत जमा करते हैं, वे उत्तरदाता के रूप में निर्वाचित होते हैं, जिससे लोगों की इच्छाओं को प्रतिबिंबित किया जाता है।
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