इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- “भारत में दो सांसदों वाली व्यवस्था का अंत: एक सीट से एक ही सांसद”
- “आखिरकार! ऐतिहासिक फैसला – दो सांसदों वाली व्यवस्था को समाप्त किया गया”
- “क्या यह सही था? भारतीय लोकसभा में ‘एक सीट, दो सांसद’ का प्रणाम?”
भारत में लोकसभा चुनाव के पहले दो दशकों में, जिसमें देशनिर्माण के उत्थान में लोगों का सामूहिक योगदान था, एक अद्वितीय राजनीतिक व्यवस्था अपनाई गई थी। इस व्यवस्था के अनुसार, कुछ सीटों पर एक सीट से अधिक सांसद चुने जा सकते थे, जो कि समाज में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।
1951 और 1957 के चुनावों में, इस अद्वितीय प्रणाली ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से लोकतंत्र की असीम स्थापना के प्रयास को दर्शाया। इस दौरान, विभिन्न सीटों पर दो-दो सांसदों का चयन किया गया, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व हो सके।
साल |
संसदीय सीट |
1-सांसद वाली सीट |
2-सांसदों वाली सीट |
SC समुदाय के लिए आरक्षित सीट |
ST समुदाय के लिए आरक्षित सीट |
कुल सीट |
1951-52 |
400 |
306 |
86 |
– |
8 |
489 |
1957 |
403 |
296 |
91 |
– |
16 |
494 |
1962 |
494 |
385 |
– |
79 |
30 |
494 |
1961 में, ‘टू-मेंबर कंस्टीट्यूएंसी एबॉलिशिन एक्ट’ के तहत, इस प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद, प्रत्येक सीट पर केवल एक ही सांसद का चयन होने लगा, जो देश के विकास में सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व को मजबूत करने में मददगार साबित हुआ।
S. No |
राज्य |
संसदीय सीट |
1-सांसद वाली सीट |
2-सांसदों वाली सीट |
SC समुदाय के लिए आरक्षित सीट |
ST समुदाय के लिए आरक्षित सीट |
कुल सीट |
1. |
असम |
10 |
8 |
2 |
– |
8 |
12 |
2. |
बिहार |
44 |
31 |
11 |
– |
2 |
55 |
3. |
बॉम्बे |
37 |
29 |
8 |
– |
– |
45 |
4. |
मध्य प्रदेश |
23 |
16 |
6 |
– |
1 |
29 |
5. |
मद्रास |
62 |
49 |
13 |
– |
– |
75 |
6. |
ओडिशा |
16 |
9 |
4 |
– |
3 |
20 |
7. |
पंजाब |
15 |
12 |
3 |
– |
– |
18 |
8. |
उत्तर प्रदेश |
69 |
52 |
17 |
– |
– |
86 |
9. |
पश्चिम बंगाल |
25 |
19 |
6 |
– |
– |
34 |
10. |
हैदराबाद |
21 |
17 |
4 |
– |
– |
25 |
11. |
मध्य भारत |
9 |
6 |
2 |
– |
1 |
11 |
12. |
मैसूर |
9 |
7 |
2 |
– |
– |
11 |
13. |
पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन |
4 |
3 |
1 |
– |
– |
5 |
14. |
राजस्थान |
18 |
15 |
2 |
– |
1 |
20 |
15. |
सौराष्ट्र |
6 |
6 |
– |
– |
– |
6 |
16. |
त्रावणकोर-कोचिन |
11 |
10 |
1 |
– |
– |
12 |
17. |
अजमेर |
2 |
2 |
– |
– |
– |
2 |
18. |
भोपाल |
2 |
2 |
— |
– |
– |
2 |
19. |
बिलासपुर |
1 |
1 |
– |
– |
– |
1 |
20. |
कुर्ग |
1 |
– |
– |
– |
– |
1 |
21. |
दिल्ली |
3 |
2 |
1 |
– |
– |
4 |
22. |
हिमाचल प्रदेश |
2 |
1 |
1 |
– |
– |
3 |
23. |
कच्छ |
2 |
2 |
– |
– |
– |
2 |
24. |
मणिपुर |
2 |
2 |
– |
– |
– |
2 |
25. |
त्रिपुरा |
2 |
2 |
– |
– |
– |
2 |
26. |
विंध्य प्रदेश |
4 |
2 |
2 |
– |
– |
6 |
27. |
कुल |
400 |
306 |
86 |
– |
8 |
489 |
आज, भारतीय लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण कदम को याद करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल देश के लोकतंत्र के विकास का प्रतीक है, बल्कि समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देने का भी एक महत्वपूर्ण कदम था। इस नई प्रणाली के माध्यम से, लोकसभा में हर क्षेत्र से न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ, जो देश की लोकतंत्र की मजबूती को और भी बढ़ावा दिया।