Holi : धन्य है यह धरा,यहां मृत्यु भी उत्सव है…’खेलें मसाने में होली’…क्या है भगवान शिव का अनूठा खेल?
काशी के मणिकर्णिका (श्मशान) घाट पर होली का खेल एक अद्वितीय और रोचक परंपरा है जिसमें भगवान शिव भी भाग लेते हैं। इस परंपरा में रंग और गुलाल की बजाय चिताओं की भस्मी से खेला जाता है, जिसमें भूत-प्रेत भी शामिल होते हैं। यह विशेषत: रंग एकादशी के दिन आयोजित किया जाता है और पुरानी परंपराओं के अनुसार इसकी शुरुआत भगवान शिव से हुई थी।
खेलैं मसाने में होरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी भूत पिशाच बटोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
यह विचित्र होली है जिसे भगवान शिव खेलते हैं, वो भी काशी के मणिकर्णिका (श्मशान) घाट पर। रंग एकादशी के दूसरे दिन काशी में स्थित श्मशान पर भी चिताओं की भस्मी के साथ होली खेलने की भी एक अनूठी परंपरा भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत शंकरजी से ही मानी जाती है।
मान्यताओं के अनुसार- जब भगवान शिव, पार्वती का गौना करने के लिए आये थे तो उनके साथ भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि नहीं थे, जिनके लिए श्मशान पर चिताओं की भस्मी से होली खेले जाने की परंपरा को बनाया गया।
लखि सुंदर फागुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के, चिता, भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
यह गीत अड़बंगी भोले बाबा के विचित्र होली की तस्वीर पेश करता है। गाया है बनारस घराने के मशहूर ठुमरी गायक ‘पद्म विभूषण’ पंडित छन्नूलाल मिश्र ने।
‘श्मशान’ जीनवयात्रा की थकान के बाद की अंतिम विश्रामस्थली है। अंतिम यात्रा के दौरान रंग-रोली तो शव को लगाया जाता है लेकिन नीलकंठ देव के चरित्र में इस समय रंग गुलाल नहीं है, जली हुई चिताओं की राख है, जिससे वो होली खेलते हैं।
गोप न गोपी श्याम न राधा, ना कोई रोक ना, कौनऊ बाधा ना साजन ना गोरी, ना साजन ना गोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी
यह पंक्तियां आपने भी जरूर सुनी होंगी। फागुन मास शुक्ल पक्ष की द्वादश तिथि काशी के लिए खास होती है। महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में उड़ती चिता भस्म के बीच बाबा विश्वनाथ के आह्लादित भक्त ये गीत गाते सुनाई देते हैं। मन से हर रंग हटाकर चिता भस्म को गुलाल बना एक दूसरे को मलते हैं…। भूतनाथ की मंगल ‘होली” देख हर कोई अभिभूत हो जाता है।
यह महज एक परंपरा नहीं। यह परम ज्ञान का सजीव चित्रण है। यह अद्भुत दृश्य हमें बताता है कि हम उस धरा पर रहते हैं जहां मृत्यु भी उत्सव मानी जाती है। एक अवसर मानी जाती है। अवसर फिर जन्म का…। अवसर फिर से पुरुषार्थ करने का…। अवसर अल्पता को संपूर्णता में बदलने का…। अवसर फिर से परम तत्व की प्राप्ति का…। अवसर फिर परोपकार का…। अवसर संसार से मोक्ष की ओर एक कदम और बढ़ाने का…। बहुतेरे अवसर…। क्या संसार के किसी और कोने में ऐसा ज्ञान है…। धन्य है ये धरा…।
हे शिव…। तुम त्याज्य को भी ग्राह्य बना देते हो…। तुम बताते हो कि चिता-भू भी श्रेष्ठ है…। तुम वैराग्य, पुरुषार्थ और संसार सिखाते हो…। कभी ध्यान में लीन हो जाते हो तो कभी गौने के बाद चिता-भस्म रमाते हो…। धन्य हो भूतनाथ…।
खेले मसाने में होली दिगम्बर खेले मसाने में होरी।
भूतनाथ की मंगल होरी।।देख सिहाई बिरज की छोरी,
धन-धन नाथ अघोरी होधन-धन नाथ अघोरी दिगम्बर खेले मसाने में होरी,
खेले मसाने होरी दिगम्बर खेले मसाने में होरी,
खेले मसाने में होरी दिगम्बर खेले मसाने में होरी।। pic.twitter.com/dnIjd1vR4g— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) March 4, 2023
महाकाल की नगरी से काशी के महाश्मशान को प्रणाम।