Chaitra Navratri 2024 , हिन्दू संस्कृति में गहरा प्रभाव डालता है और दुनिया भर के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होता है। नौ दिनों के उत्सव के दौरान, माँ दुर्गा के नौ रूपों का पूजन किया जाता है, जो महानवमी या दुर्गा नवमी के रूप में जाना जाता है। इस उत्सव की नवमी तिथि विशेष होती है, क्योंकि इस दिन नवरात्रि समाप्त हो जाती है और माँ दुर्गा अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखती हैं।
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- चैत्र नवरात्रि 2024: माँ सिद्धिदात्री की पूजा का समय, विधि और महिमा का जानकारी
- चैत्र नवरात्रि 2024: महानवमी पर माँ सिद्धिदात्री की पूजा से आपको मिलेगा अनुभव दिव्यता का!
- क्या चैत्र नवरात्रि अभियानों को पारंपरिक रिवाजों से आगे बढ़ाना चाहिए?
माँ सिद्धिदात्री को कहा जाता है कि वे सभी सिद्धियों से पूर्ण हैं। उनकी पूजा करने पर भक्तों को उनकी विशेष कृपा मिलती है। चैत्र नवरात्रि के दौरान, माँ दुर्गा के 9 रूपों का विशेष पूजन किया जाता है, जिसमें व्रत और प्रार्थनाएँ शामिल होती हैं। उत्सव के आखिरी दिन, कन्या पूजन के साथ हवन भी किया जाता है। इस बार, चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल को शुरू हुई थीं और आज (17 अप्रैल) समाप्त होंगी। महानवमी के दिन, माँ दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की सिद्धियों से परिपूर्ण हैं।
माँ सिद्धिदात्री की चार भुजाएँ होती हैं, जिनमें एक हाथ में कमल पुष्प, दूसरे हाथ में गदा, तीसरे हाथ में चक्र और चौथे हाथ में शंख होता है। वे सिंह की सवारी करती हैं और पूरी दुनिया का कल्याण करती हैं। उन्हें ‘जगत जननी’ भी कहा जाता है, क्योंकि वे सभी जगत की माँ हैं। वेदों, पुराणों और शास्त्रों में माँ सिद्धिदात्री के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है, जो उनकी अष्ट सिद्धियों का संदर्भ देता है।
चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 1:24 बजे से शुरू होगी और 17 अप्रैल को दोपहर 3:14 बजे खत्म होगी। इस दिन राम नवमी भी मनाई जाएगी। नवमी के दिन, लोग अपना व्रत समाप्त करते हैं और उन्हें हलवा और काले चने का भोग चढ़ाया जाता है।
प्रस्तावित जानकारी केवल परंपराओं और धार्मिक विश्वासों पर आधारित है। किसी भी प्रथा या धार्मिक विश्वास को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श करना उत्तम होगा।
हिमाचल के नंदा पर्वत पर स्थित है मां सिद्धिदात्री का मंदिर
माता सिद्धिदात्री का प्रसिद्ध मंदिर हिमाचल के नंदा पर्वत पर है। माता की उपासना करने से अष्ट सिद्धि और नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। देवी सिद्धिदात्री को भोग में हलवा, पूड़ी, काले चने, मौसमी फल, खीर और नारियल चढ़ाया जाता है। पूजा के वक्त बैगनी या जामुनी रंग पहनना शुभ माना जाता है।
नवरात्र पर्व के अंतिम दिन मां सिद्धदात्री का होता है, अगर आप मां सिद्धिदात्री का दर्शन करना चाहते हैं तो छिंदवाड़ा के 1200 साल पुराने मंदिर में जा सकते हैं, जो कलेक्टर बंगला के पास गुरैया रोड पर स्थित है. यहां आप मां के अंतिम स्वरूप का दर्शन कर मां को प्रसन्न कर सकतें है. (Chhindwara Mata Siddhidatri Temple)
वाराणसी के मां सिद्धिदात्री मंदिर यहा पर क्लिक करे
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 1.24 बजे से शुरू हो जाएगी। यह अगले दिन 17 अप्रैल को दोपहर 3.14 बजे खत्म होगी। इस दिन राम नवमी भी मनाई जाएगी। नवमी के दिन भी बहुत से लोग अपना खत्म करते हैं। कुछ लोग अष्टमी के दिन भी व्रत तोड़ देते हैं। नवमी पर दोपहर 3.14 बजे के बाद नवरात्रि व्रत का पारण कर सकते हैं।
मां सिद्धिदात्री की पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले आदिशक्ति और जगत जननी मां दुर्गा को प्रणाम करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई कर नहाकर तैयार हो जाएं। अब गंगाजल से आचमन करें और माता की तस्वीर या मूर्ति को गंगाजल से साफ करें। इसके बाद इन मंत्रों का जाप करें। माता रानी को प्रसन्न करने के लिए नवमी के दिन उन्हें हलवा और काले चने का भोग लगाया जाता है।
मां सिद्धिदात्री भोग
ऐसा कहा जाता है कि माता सिद्धिदात्री को हलवा-पूड़ी और चना का भोग लगाना चाहिए। साथ ही इस प्रसाद को कन्याओं और ब्राह्मणों में बांटना बेहद शुभ माना गया है। ऐसा करने वाले साधक से मां प्रसन्न होती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
मां सिद्धिदात्री की आरती
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
तेरी पूजा में न कोई विधि है
तू जगदंबे दाती तू सर्वसिद्धि है
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तू सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उस के रहे न अधूरे
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा
महानंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता…
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
पूछे जाने वाले प्रश्न
- चैत्र नवरात्रि क्या है? चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक पर्व है जो मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। यह चैत्र माह में आता है, जो कि मार्च या अप्रैल में होता है, और नौ दिन तक चलता है।
- चैत्र नवरात्रि का महत्व क्या है? चैत्र नवरात्रि के आरंभ से संबंधित है कि यह वसंत ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करता है और हिंदुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इन नौ दिनों में मां दुर्गा अपने भक्तों को खुशी, समृद्धि और सफलता प्रदान करती हैं।
- Chaitra Navratri 2024 की तिथियाँ क्या हैं? Chaitra Navratri 2024 9 अप्रैल से शुरू होकर 18 अप्रैल को समाप्त होगी।
- चैत्र नवरात्रि में भोग क्या होता है? चैत्र नवरात्रि में भोग उन नौ भगवती दुर्गा को अर्पित किया जाता है जिनका उपासना किया जाता है। प्रत्येक दिन, भक्त देवी के लिए एक विशेष वस्त्र तैयार करते हैं और उसे भोग के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
- चैत्र नवरात्रि में पूजने जाने वाली नौ देवियां कौन-कौन सी हैं? चैत्र नवरात्रि में पूजने जाने वाली नौ देवियां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं।
- चैत्र नवरात्रि के दौरान कुछ सामान्य भोग क्या होते हैं? चैत्र नवरात्रि के दौरान कुछ सामान्य भोग में हलवा, क्षीर, लड्डू, फल, नारियल, दूध, और अन्य दूध से बने उत्पाद शामिल होते हैं। प्रत्येक देवी के लिए विशेष भोग होता है।
- मां ब्रह्मचारिणी का जन्म कैसे हुआ?मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। नारदजी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, ताकि वे भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप के कारण उनका ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी नाम पड़ा। भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल-फूल खाए तथा 100 वर्ष तक शाक खाकर जीवित रहीं।
- ब्रह्मचारिणी माता को क्या पसंद है? मां ब्रह्मचारिणी का भोग (Devi Brahmacharini Bhog): मां के इस स्वरुप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ माँ का वात्सल्य (Devi Brahmacharini Blessing): माता की कृपा से लंबी आयु , आरोग्य ,अभय , आत्मविश्वास व सौभाग्य का वरदान देतीं हैं।
- मां ब्रह्मचारिणी किसका प्रतीक है?माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।
- देवी कुष्मांडा की कहानी क्या है? कुष्मांडा देवी की कथा माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव जंतु नहीं था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है।
- कुष्मांडा देवी का दूसरा नाम क्या है?देवी कुष्मांडा के आठ हाथ हैं और इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
- कुष्मांडा नाम क्यों पड़ा?मान्यता है कि मां दुर्गा के चौथे स्वरूप की मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई थी. इसी के चलते मां का नाम कुष्मांडा पड़ा.
- मां स्कंदमाता कौन है? भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है।
- स्कंदमाता का प्रिय भोग क्या है? मां स्कंदमाता का प्रिय भोग (Maa Skandmata Bhog) पांचवें दिन पूजा के समय मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है। इसलिए माता को इसका भोग अवश्य लगाएं।
- माँ कात्यायनी कौन हैं? माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है।
- मां कात्यायनी किसका प्रतीक है? वह ज्ञान और सद्भाव का प्रतिनिधित्व करती है। कहा जाता है कि देवी कात्यायनी का आशीर्वाद भक्तों के पापों को शुद्ध करता है, बुरी आत्माओं को दूर करता है और बाधाओं को दूर करता है। इसके अलावा, जिस दिन नवरात्रि के दौरान मां कात्यायनी की पूजा की जाती है, उस दिन अविवाहित लड़कियां अपनी पसंद का पति पाने के लिए व्रत रखती हैं।
- मां कात्यायनी की उत्पत्ति कैसे हुई? कहते हैं कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बृज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी की पूजा से देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं और कन्याओं को अच्छे पति का वरदान देते हैं। कात्यायन ऋषि की तपस्या से खुश होकर मां ने पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लिया था। इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
- कात्यायनी माता के लिए कौन सा मंदिर प्रसिद्ध है? वृन्दावन में श्री कात्यायनी पीठ मंदिर ।
- मां कालरात्रि कौन है? माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते।
- मां काली और कालरात्रि में क्या अंतर है? दोनों में सबसे बड़ा फर्क यही है कि कालरात्रि माता गले में विद्युत की माला धारण करती हैं और देवी काली नरमुंड की माला पहनती हैं। आपको बता दें कि देवी कालरात्रि की अराधना करने से अकाल मृत्यु का डर भाग जाता है। इसलिए नवरात्रि के सांतवे दिन विधि-विधान से देवी कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- कालरात्रि माता का शास्त्र कौन सा है? शास्त्रों में माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है. माता कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा अर्चना और व्रत करने वाले भक्तों को मां सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं यानी माता की पूजा करने के वाले भक्तों को अकाल मृत्यु का भय भी कभी नहीं सताता है.
- Chaitra Navratri के सातवें दिन किस देवी की पूजा की जाती है? मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है।
- मां कालरात्रि की पूजा का क्या महत्व है? मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
- पूजा के दौरान भक्तों को क्या करना चाहिए? पूजा के दौरान भक्तों को तन और मन से पवित्र होकर पूरी श्रद्धा के साथ मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए।
- मां कालरात्रि की पूजा के लिए कौन सा भोग चढ़ाना चाहिए? मां कालरात्रि की पूजा में गुड़ और हलवा का भोग चढ़ाना चाहिए।
- मां कालरात्रि के मंत्र का जप कब करना चाहिए? मां कालरात्रि के मंत्र का जप रात को पूजा के समय करना चाहिए।
- महागौरी नाम क्यों पड़ा? एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
- महागौरी का अर्थ क्या है? Maa Mahagauri नवदुर्गा का सबसे दीप्तिमान और सुंदर रूप है। नवरात्रि के आठवें दिन, महा अष्टमी जिसे दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है तब नव दुर्गा के आठवें रूप, महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए जानी जाती हैं। उनके नाम का अर्थ है: महा’ – महान/विशाल और ‘गौरी’- सफेद।
- गौरी किसकी बेटी थी? माता पार्वती हिंदू भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमांचल और रानी मैना की बेटी हैं।
- सिद्धिदात्री कौन सी देवी है? माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है।
- सिद्धिदात्री देवी का भोग क्या है? ऐसा कहा जाता है कि माता सिद्धिदात्री को हलवा-पूड़ी और चना का भोग लगाना चाहिए। साथ ही इस प्रसाद को कन्याओं और ब्राह्मणों में बांटना बेहद शुभ माना गया है। ऐसा करने वाले साधक से मां प्रसन्न होती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।
- मां सिद्धिदात्री किसका प्रतिनिधित्व करती है? सिद्धि शब्द का अर्थ है अलौकिक शक्ति और धात्री का अर्थ है पुरस्कार देने वाला। इसलिए, यह माना जाता है कि माँ सिद्धिदात्री सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूरा करती हैं। मां सिद्धिदात्री को पूर्णता प्रदान करने वाली देवी माना जाता है। वह अपने भक्तों को बुद्धि का आशीर्वाद देती हैं और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हैं।
- चैत्र नवरात्रि कैसे मनाई जाती है? चैत्र नवरात्रि के दौरान, भक्त उपवास रखते हैं, विशेष पूजाएँ करते हैं, और मां दुर्गा के समर्पित मंदिरों का दौरा करते हैं। वे अपने घरों को सजाते हैं, समुदायिक सभाओं का आयोजन करते हैं, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
- चैत्र नवरात्रि में भोग अर्पित करने के क्या लाभ होते हैं? चैत्र नवरात्रि में भोग अर्पित करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो कि समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में सफलता लाता है। यह भी देवी के प्रति कृतज्ञता का एक तरीका माना जाता है।
- क्या गैर-हिन्दू लोग चैत्र नवरात्रि के उत्सव में शामिल हो सकते हैं? चैत्र नवरात्रि एक हिन्दू त्योहार है, लेकिन सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोगों का स्वागत इसके उत्सव में किया जाता है। यह खुशी, समरसता, और आध्यात्मिक विकास का समय है, जो उन सभी के लिए खुला है जो इस उत्सव में शामिल होना चाहते हैं।
- चैत्र नवरात्रि को घर पर कैसे मनाया जा सकता है? घर पर चैत्र नवरात्रि मनाने के लिए, लोग प्रतिदिन पूजा कर सकते हैं, भोग अर्पित कर सकते हैं, दुर्गा मंत्रों का जाप कर सकते हैं, और यदि संभव हो तो उपवास कर सकते हैं। इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा की विजयोत्सव की कहानियों को पढ़ना या सुनना भी सामान्य होता है।
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