Chaitra Navratri 2024 के आठवें दिन, मां महागौरी की पूजा करने से सभी कष्टों का नाश होता है। इस अद्भुत दिन के महत्व को जानने के लिए पढ़ें।
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- Chaitra Navratri 2024: नवरात्रि के आठवें दिन करें मां महागौरी की पूजा, सभी कष्ट होंगे दूर
- चैत्र नवरात्रि 2024: मां महागौरी की पूजा से पाएं पापों का नाश!
- नवरात्रि 2024: क्या मां महागौरी की पूजा से होता है असंभव को संभव?
चैत्र नवरात्रि 2024 के आठवें दिन को मां महागौरी की पूजा करने का महत्व अत्यधिक है। इस दिन माता महागौरी की आराधना से जीवन के सभी कष्ट और संकट दूर होते हैं और व्यक्ति को आनंद, शांति और समृद्धि का अनुभव होता है। चैत्र नवरात्रि के यह आठवां दिन, जिसे लोग महागौरी अष्टमी के रूप में जानते हैं, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन मां महागौरी की पूजा करने से शुभ फल प्राप्ति होती है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
चैत्र नवरात्रि के इस उत्सव में महागौरी माँ की पूजा का विशेष महत्व है। माँ महागौरी को आदि शक्ति के अंश के रूप में पूजा जाता है, जो सभी दुःखों को दूर करने वाली हैं। मां की पूजा के लिए भक्तों को सफेद रंग के कपड़े पहनना और सात विधिवत पूजा की विधियों का पालन करना चाहिए।
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मां महागौरी की पूजा का विधान संक्षेप में यह है कि श्रद्धालु सुबह उठकर नियमित ध्यान और पूजा करें। इसके बाद, मां की मूर्ति को स्नान कर गंगाजल से अभिषेक करें और उन्हें सफेद रंग के फूलों से सजाएं। ध्यान और पूजा के साथ, मां की आराधना के लिए ध्यानपूर्वक भजन की जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है। इसके बाद, भोग, मिठाई और फल चढ़ाएं और प्रार्थना के बाद प्रसाद वितरित करें।
महागौरी माता की पूजा के दिन को धर्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन की पूजा से पापों का नाश होता है और भक्तों को आनंद, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस नवरात्रि में मां महागौरी की पूजा करके भक्त अपने जीवन में समृद्धि और सौभाग्य का अनुभव कर सकते हैं।
वाराणसी में स्थित है मां महागौरी का मंदिर
मां महागौरी का मंदिर वाराणसी यानी काशी में है. यह मंदिर पंचगंगा घाट पर है. यह मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है. यहां सुबह और शाम आरती होती है. मंदिर के प्रांगण में दोपहर के बाद आनंदनम होता है, जिसमें श्रद्धालुओं को मुफ़्त में भोजन दिया जाता है.
देवी दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है और नवरात्रि के आठवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इन्हें मां पार्वती(अन्नपूर्णा) के रूप में पूजा जाता है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है,इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है। इनके गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है एवं इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। मान्यता के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। तभी से इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी त्रैलोक्य पूज्य मंगला, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी का नाम दिया गया।
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मां महागौरी की पूजा का महत्व
मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है। इनकी उपासना से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं, उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। उसके पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं और भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं रहते। इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं। धन-धन्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए मां गौरी की उपासना की जानी चाहिए।
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मां महागौरी की पूजा विधि
अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें, मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन मां की हलुआ,पूरी,सब्जी,काले चने एवं नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें। अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी
पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को पति के रूप में पाने हेतु देवी ने कठिन तपस्या की थी जिससे देवी का शरीर काला पड़ गया था। भगवान शंकर देवी की साधना से प्रसन्न होकर मां के शरीर को गंगा-जल से स्वच्छ किया था। तब देवी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और गौर वर्ण का हो गया और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
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मां महागौरी का मंत्र
सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।
वंदना मंत्र
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
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महागौरी माता की आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जया उमा भवानी जय महामाया।।
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहां निवासा।।
चंद्रकली और ममता अंबे।
जय शक्ति जय जय मां जगदंबे।।
भीमा देवी विमला माता।
कौशिकी देवी जग विख्याता।।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।।
सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया।।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया।।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।।
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।।
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Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
पूछे जाने वाले प्रश्न
- चैत्र नवरात्रि क्या है? चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक पर्व है जो मां दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। यह चैत्र माह में आता है, जो कि मार्च या अप्रैल में होता है, और नौ दिन तक चलता है।
- चैत्र नवरात्रि का महत्व क्या है? चैत्र नवरात्रि के आरंभ से संबंधित है कि यह वसंत ऋतु की शुरुआत को चिह्नित करता है और हिंदुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। माना जाता है कि इन नौ दिनों में मां दुर्गा अपने भक्तों को खुशी, समृद्धि और सफलता प्रदान करती हैं।
- Chaitra Navratri 2024 की तिथियाँ क्या हैं? Chaitra Navratri 2024 9 अप्रैल से शुरू होकर 18 अप्रैल को समाप्त होगी।
- चैत्र नवरात्रि में भोग क्या होता है? चैत्र नवरात्रि में भोग उन नौ भगवती दुर्गा को अर्पित किया जाता है जिनका उपासना किया जाता है। प्रत्येक दिन, भक्त देवी के लिए एक विशेष वस्त्र तैयार करते हैं और उसे भोग के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
- चैत्र नवरात्रि में पूजने जाने वाली नौ देवियां कौन-कौन सी हैं? चैत्र नवरात्रि में पूजने जाने वाली नौ देवियां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं।
- चैत्र नवरात्रि के दौरान कुछ सामान्य भोग क्या होते हैं? चैत्र नवरात्रि के दौरान कुछ सामान्य भोग में हलवा, क्षीर, लड्डू, फल, नारियल, दूध, और अन्य दूध से बने उत्पाद शामिल होते हैं। प्रत्येक देवी के लिए विशेष भोग होता है।
- मां ब्रह्मचारिणी का जन्म कैसे हुआ?मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था। नारदजी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया, ताकि वे भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप के कारण उनका ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी नाम पड़ा। भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष तक केवल फल-फूल खाए तथा 100 वर्ष तक शाक खाकर जीवित रहीं।
- ब्रह्मचारिणी माता को क्या पसंद है? मां ब्रह्मचारिणी का भोग (Devi Brahmacharini Bhog): मां के इस स्वरुप को मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ माँ का वात्सल्य (Devi Brahmacharini Blessing): माता की कृपा से लंबी आयु , आरोग्य ,अभय , आत्मविश्वास व सौभाग्य का वरदान देतीं हैं।
- मां ब्रह्मचारिणी किसका प्रतीक है?माँ दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।
- देवी कुष्मांडा की कहानी क्या है? कुष्मांडा देवी की कथा माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी जीव जंतु नहीं था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है।
- कुष्मांडा देवी का दूसरा नाम क्या है?देवी कुष्मांडा के आठ हाथ हैं और इसलिए उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
- कुष्मांडा नाम क्यों पड़ा?मान्यता है कि मां दुर्गा के चौथे स्वरूप की मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई थी. इसी के चलते मां का नाम कुष्मांडा पड़ा.
- मां स्कंदमाता कौन है? भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसन पर विराजमान हैं, इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है।
- स्कंदमाता का प्रिय भोग क्या है? मां स्कंदमाता का प्रिय भोग (Maa Skandmata Bhog) पांचवें दिन पूजा के समय मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना अति शुभ माना जाता है। इसलिए माता को इसका भोग अवश्य लगाएं।
- माँ कात्यायनी कौन हैं? माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है।
- मां कात्यायनी किसका प्रतीक है? वह ज्ञान और सद्भाव का प्रतिनिधित्व करती है। कहा जाता है कि देवी कात्यायनी का आशीर्वाद भक्तों के पापों को शुद्ध करता है, बुरी आत्माओं को दूर करता है और बाधाओं को दूर करता है। इसके अलावा, जिस दिन नवरात्रि के दौरान मां कात्यायनी की पूजा की जाती है, उस दिन अविवाहित लड़कियां अपनी पसंद का पति पाने के लिए व्रत रखती हैं।
- मां कात्यायनी की उत्पत्ति कैसे हुई? कहते हैं कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बृज की गोपियों ने माता कात्यायनी की पूजा की थी। माता कात्यायनी की पूजा से देवगुरु ब्रहस्पति प्रसन्न होते हैं और कन्याओं को अच्छे पति का वरदान देते हैं। कात्यायन ऋषि की तपस्या से खुश होकर मां ने पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लिया था। इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा।
- कात्यायनी माता के लिए कौन सा मंदिर प्रसिद्ध है? वृन्दावन में श्री कात्यायनी पीठ मंदिर ।
- मां कालरात्रि कौन है? माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं। इनके उपासकों को अग्नि-भय, जल-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते।
- मां काली और कालरात्रि में क्या अंतर है? दोनों में सबसे बड़ा फर्क यही है कि कालरात्रि माता गले में विद्युत की माला धारण करती हैं और देवी काली नरमुंड की माला पहनती हैं। आपको बता दें कि देवी कालरात्रि की अराधना करने से अकाल मृत्यु का डर भाग जाता है। इसलिए नवरात्रि के सांतवे दिन विधि-विधान से देवी कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए और उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- कालरात्रि माता का शास्त्र कौन सा है? शास्त्रों में माता कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है. माता कालरात्रि की विधिवत रूप से पूजा अर्चना और व्रत करने वाले भक्तों को मां सभी बुरी शक्तियां और काल से बचाती हैं यानी माता की पूजा करने के वाले भक्तों को अकाल मृत्यु का भय भी कभी नहीं सताता है.
- Chaitra Navratri के सातवें दिन किस देवी की पूजा की जाती है? मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है।
- मां कालरात्रि की पूजा का क्या महत्व है? मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
- पूजा के दौरान भक्तों को क्या करना चाहिए? पूजा के दौरान भक्तों को तन और मन से पवित्र होकर पूरी श्रद्धा के साथ मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए।
- मां कालरात्रि की पूजा के लिए कौन सा भोग चढ़ाना चाहिए? मां कालरात्रि की पूजा में गुड़ और हलवा का भोग चढ़ाना चाहिए।
- मां कालरात्रि के मंत्र का जप कब करना चाहिए? मां कालरात्रि के मंत्र का जप रात को पूजा के समय करना चाहिए।
- महागौरी नाम क्यों पड़ा? एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
- महागौरी का अर्थ क्या है? Maa Mahagauri नवदुर्गा का सबसे दीप्तिमान और सुंदर रूप है। नवरात्रि के आठवें दिन, महा अष्टमी जिसे दुर्गा अष्टमी भी कहा जाता है तब नव दुर्गा के आठवें रूप, महागौरी की पूजा की जाती है। मां महागौरी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए जानी जाती हैं। उनके नाम का अर्थ है: महा’ – महान/विशाल और ‘गौरी’- सफेद।
- गौरी किसकी बेटी थी? माता पार्वती हिंदू भगवान शिव की पत्नी हैं । वह पर्वत राजा हिमांचल और रानी मैना की बेटी हैं।
- चैत्र नवरात्रि कैसे मनाई जाती है? चैत्र नवरात्रि के दौरान, भक्त उपवास रखते हैं, विशेष पूजाएँ करते हैं, और मां दुर्गा के समर्पित मंदिरों का दौरा करते हैं। वे अपने घरों को सजाते हैं, समुदायिक सभाओं का आयोजन करते हैं, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
- चैत्र नवरात्रि में भोग अर्पित करने के क्या लाभ होते हैं? चैत्र नवरात्रि में भोग अर्पित करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो कि समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और जीवन में सफलता लाता है। यह भी देवी के प्रति कृतज्ञता का एक तरीका माना जाता है।
- क्या गैर-हिन्दू लोग चैत्र नवरात्रि के उत्सव में शामिल हो सकते हैं? चैत्र नवरात्रि एक हिन्दू त्योहार है, लेकिन सभी धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोगों का स्वागत इसके उत्सव में किया जाता है। यह खुशी, समरसता, और आध्यात्मिक विकास का समय है, जो उन सभी के लिए खुला है जो इस उत्सव में शामिल होना चाहते हैं।
- चैत्र नवरात्रि को घर पर कैसे मनाया जा सकता है? घर पर चैत्र नवरात्रि मनाने के लिए, लोग प्रतिदिन पूजा कर सकते हैं, भोग अर्पित कर सकते हैं, दुर्गा मंत्रों का जाप कर सकते हैं, और यदि संभव हो तो उपवास कर सकते हैं। इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा की विजयोत्सव की कहानियों को पढ़ना या सुनना भी सामान्य होता है।
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