सांझी माता विसर्जन (Sanjhi Mata Visarjan) एक अनूठी परंपरा है जिसमें मटकों को तोड़कर अशुभ घटना से बचाव किया जाता है। सांझी पूजन भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है, विशेष रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में। आरती भक्ति का प्रतीक है और सांझी पूजन लोक आस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस त्योहार के अंत में, सांझी माता का विसर्जन किया जाता है, जो अपने आप में एक अनूठी परंपरा का गवाह है।

सांझी माता विसर्जन: एक अनूठी परंपरा का निर्वहन
सांझी माता विसर्जन: एक अनूठी परंपरा का निर्वहन

इस खबर की महत्वपूर्ण बातें

  • सांझी माता विसर्जन (Sanjhi Mata Visarjan) : परंपरा और महत्व
  • सांझी माता विसर्जन में मटकों का विध्वंस: क्या है इस रहस्यमयी परंपरा का सच?
  • सांझी माता विसर्जन (Sanjhi Mata Visarjan) : आस्था या अंधविश्वास?

मटकों का विध्वंस: एक अशुभ घटना से बचाव

विसर्जन के दौरान, गांव के युवा लड़के लट्ठ लेकर जोहड़ में उतरते हैं और सांझी के मटकों को तोड़ते हैं। यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि यदि सांझी तैरकर जोहड़ के दूसरे किनारे तक पहुंच जाती है, तो यह गांव के लिए अशुभ संकेत माना जाता है। मटकों को तोड़कर, वे सुनिश्चित करते हैं कि सांझी दूसरे किनारे तक नहीं पहुंच पाए।

यह है मान्यता

ऐसा माना जाता है कि कुंवारी कन्याएं विद्या और योग्य वर का वरदान मांगने के लिए देवी सांझी को स्थापित करती हैं। नवरात्रों में लगातार नौ दिन तक सुबह देवी को भोग लगाया जाता है और शाम के समय घर की महिलाएं और पास-पड़ोस की कन्याएं देवी की वंदना करते हुए उसे भोजन कराती हैं। अंतिम दिन यानी दशहरे के दिन देवी को दीवार से विधि-विधान के साथ उतारा जाता है और शरीर के बाकी अंगों को तो फेंक दिया जाता है लेकिन उसके मुख को एक छेद किए हुए घड़े में रख दिया जाता है और रात्रि के समय उसके भीतर दीपक जलाकर महिलाएं और लड़कियां गीत गाते हुए जोहड़ में उसका विसर्जन कराने जाती हैं।

ऐसी परंपरा है कि विसर्जन के समय गांव के लड़के लट्ठ आदि लेकर जोहड़ के भीतर मौजूद रहते हैं और सांझी के मटकों को फोड़ते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सांझी तैरते हुए जोहड़ के दूसरे किनारे तक ना पहुंचे। ऐसा कहा जाता है कि जोहड़ के दूसरे किनारे तक यदि सांझी पहुंच गई तो यह गांव के लिए अपशकुन होगा।

आरती: भक्ति का प्रकाश

सांझी माता के विसर्जन के साथ-साथ, आरती भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। आरती हिंदू धर्म में भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, जिसमें जलती हुई लौ या दीपक को देवी-देवताओं के सामने एक विशेष तरीके से घुमाया जाता है।

आरती की विधि

  • आरती में घंटी और शंख बजाना महत्वपूर्ण होता है, जो वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाता है।
  • आरती करने के लिए, एक बाती वाला या पांच या सात बाती वाला दीपक लिया जाता है।
  • भगवान के अनुसार तेल या घी का दीपक जलाया जाता है।
  • आरती सबसे पहले भगवान के चरणों से शुरू की जाती है, जो उनके प्रति सम्मान और नमन का प्रतीक है।
  • आरती को कुल 14 बार घुमाया जाता है, जिसमें प्रत्येक दिशा और अंग का विशेष महत्व होता है।
  • आरती के बाद भक्तगण दोनों हाथों से आरती लेते हैं, जो उनके जीवन में आशीर्वाद और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

सांझी माता की आरती 

आरती री आरती, सांझी माई की आरती।
आरती के फूल हैं, चमेली का डोरा,
डोरा री डोरा, सांझी का भैया गोरा।।

गोरी बावड़ी, चमके हैं चूड़ला,
अस्सी तेरे पान, पिछासी तेरे चूड़ला।।
नो नॉर्टे देवी के, पित्रों की सोलह कनागत,
उठो मेरी देवी, खोलो अपने किवाड़।
पूजन को आये हैं, तेरे दरबार।।
पूज पाज क्या मांगे, भाई-भतीजे सब परिवार।।

टोकरी में हैं अड़िया-बड़िया,
सांझी का मुख पन्नों से बढ़िया।।
दे री दे, सीताराम की अटरिया,
मैंने बोई थी कचरी कचरिया।।

कच्ची कचरी, कड़वा है तेल,
दूधो मइया, पुत्रों को मिले तेल।।
जाग री सांझी, तेरे माथे का भाग,
दिल्ली से आये हैं तेरे भाई भियाने।।
भेर पत्यारी, गहने भी लाये।।

क्या मेरी सांझी पहनेगी,
क्या मेरी सांझी ओढ़ेगी।
शाल-दुशाला ओढ़ेगी,
सोना-चांदी पहनेगी।।

मेरी सांझी के ओरे धरे,
हरी-भरी है चोलाई।
मैं पूछूं तुझसे सांझी मइया,
क्या कहेगा तेरा भाई।।

पांच पचास भतीजे, नो दस भाई,
नो दसों का उंडण मुंडन,
सातों की है सगाई।।
कचहरी में बैठे हैं,
पांच मेरे भाई।।

सांझी मइया की जय!

SANJHI MAI AARTA I HARYANVI BHAJAN I HARVINDER MALIK I MUKESH VERMA

सांझी माता: लोक आस्था का प्रतीक

सांझी माता, जिन्हें संजा, संजली, और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है, एक लोक देवी हैं, जिनकी पूजा मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में की जाती है। वे विवाह, संतान प्राप्ति, और सुख-समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। सांझी पूजन विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, जो अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।

सांझी पूजन का महत्व

सांझी पूजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार समुदाय को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता को मजबूत करता है। यह महिलाओं को अपनी रचनात्मकता और कलात्मक प्रतिभा को प्रदर्शित करने का अवसर भी प्रदान करता है।

सांझी माता विसर्जन (Sanjhi Mata Visarjan) एक अनूठी परंपरा का निर्वहन

कम होती सांझी भी चिंता का विषय……….सांझी के प्रति देहात में उत्साह कम नहीं है लेकिन

पिछले कुछ सालों की तुलना में अब गांव-देहात में दशहरे के अवसर पर सांझी के दर्शन कम हुए हैं। लोगों की चिंता  इस बात को लेकर है कि नई पीढ़ी गांव-देहात में इसे पिछड़ेपन का प्रतीक मानने लगी है। वह ¨चतित हैं कि उनके बाद गांव-देहात में सांझी कला कहीं आधुनिकता के रंग के आगे दम न तोड़ दे। इसके संरक्षण के लिए वह जागरूकता की जरूरत बताते हैं। लोक गायिका नेहा शर्मा ने बताया कि गांव देहात में अब कुछ लोग सांझी की स्थापना करना पिछड़ापन मानने लगे हैं। मगर अभी भी बहुत से घरों में अब भी सांझी की स्थापना जरूर होती है, इन लोगों में पहले जो उत्साह होता था वह आज भी है।

महाकालेश्वर उज्जैन नगर के प्रसिद्ध पंडित सूर्यनारायण मिश्रा का कहना है कि आज के युवा आधुनिकता की दौड़ में अपने मूल्यों, रीति-रिवाजों और तीज-त्योहारों से दूर होते जा रहे हैं। समाज में यह जागरूकता लाने की जरूरत है कि अपनी धरोहरों से कट जाना उसी तरह है, जैसे जड़ से उखड़ा हुआ पेड़। ये तीज-त्योहार और परंपराएं ही हमारे जीवन में नई ऊर्जा भरते हैं और हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखते हैं, जिसमें सांझी माई की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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पूछे जाने वा प्रश्न

1.सांझी पूजन क्या है? सांझी पूजन एक लोक त्योहार है, जिसमें महिलाएं सांझी माता की पूजा करती हैं और अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।

2.सांझी माता का विसर्जन कैसे किया जाता है? सांझी माता का विसर्जन एक विशेष तरीके से किया जाता है, जिसमें मटकों को तोड़कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे जोहड़ के दूसरे किनारे तक नहीं पहुंच पाए।

3.आरती का क्या महत्व है? आरती हिंदू धर्म में भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, जिसमें जलती हुई लौ या दीपक को देवी-देवताओं के सामने एक विशेष तरीके से घुमाया जाता है।

4.सांझी माता कौन हैं? सांझी माता एक लोक देवी हैं, जिनकी पूजा मुख्य रूप से राजस्थान और मध्य प्रदेश में की जाती है। वे विवाह, संतान प्राप्ति, और सुख-समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।

5.सांझी पूजन का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है? सांझी पूजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह त्योहार समुदाय को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता को मजबूत करता है।

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