शिव चालीसा (Shiv Chalisa) एक भक्ति स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति और महिमा का वर्णन करता है। इसमें 40 चौपाइयां और दोहों के माध्यम से शिव के अद्वितीय रूप, शक्ति और आशीर्वाद का गुणगान किया गया है। शिव चालीसा का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। भक्त इसे नियमित रूप से पढ़कर अपने जीवन में शिव की उपस्थिति का अनुभव करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
अर्थ– हे पार्वती सुत, सभी मंगल कार्यों के ज्ञाता श्री गणेश जी, आपकी जय हो। मैं अयोध्यादास आपसे वरदान मांगता हूँ।
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला, सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके, कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अर्थ- हे पार्वती वल्लभ, आपकी जय हो! आप दीन लोगों पर कृपा और साधु-संतजनों की रक्षा करने वाले हो। हे त्रिशूलधारी, नीलकण्ठ! आपके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है और कानो में नागफनी के कुण्डल शोभायमान हैं।
अंग गौर शिर गंग बहाये, मुण्डमाल तन क्षार लगाए ।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे, छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
अर्थ- आप गौर वर्णी हैं जिनके सर की जटाओं में गंगाजी बह रही हैं, गले में मूण्डों की माला है और शरीर पर भस्म लगा रखी है। हे त्रिलोकी, आपके वस्त्र बाघ की खाल के हैं। आपकी शोभा को देखकर नाग और मुनिजन मोहित हो रहे हैं।
मैना मातु की हवे दुलारी, बाम अंग सोहत छवि न्यारी ।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी, करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
अर्थ– माता मैना की प्रिय पुत्री पार्वतीजी आपके बाईं ओर सुशोभित हैं इनकी आभा एवं शोभा अत्यंत निराली और न्यारी है। आपके हाथ में धारण किया हुआ त्रिशूल अपनी उत्तम छवि से शोभामान हो रहा है जिससे आप सदैव शत्रुओं का संहार करते रहते हैं।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे, सागर मध्य कमल हैं जैसे ।
कार्तिक श्याम और गणराऊ, या छवि को कहि जात न काऊ ॥
अर्थ– आपके पास आपका वाहन नन्दी और गणेशजी कुछ इस प्रकार शोभायमान हो रहे हैं जैसे समुद्र के बीच में कमल खिले हों। कार्तिकेयजी और उनके गण वहां पर विराजमान हैं। इस दृश्य की शोभा का वर्णन करना असंभव है।
देवन जबहीं जाय पुकारा, तब ही दुख प्रभु आप निवारा ।
किया उपद्रव तारक भारी, देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
अर्थ– हे प्रभु, देवताओं ने जब भी आपसे सहायता की पुकार की, आपने बिना विलम्ब किए उनके सभी कष्ट दूर किए हैं। जब ताड़कासुर ने भीषण अत्याचार करने आरंभ किए तो सभी देवताओं ने आपसे रक्षा करने की प्रार्थना की।
तुरत षडानन आप पठायउ, लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ।
आप जलंधर असुर संहारा, सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
अर्थ– आपने उसी समय कार्तिकेयजी को वहां भेजा जिन्होंने उस राक्षस को मार गिराया। आपने जलंधर नामक भयंकर राक्षस का संहार किया। आपकी ऐसी कीर्ति से समस्त संसार परिचित है।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई, सबहिं कृपा कर लीन बचाई ।
किया तपहिं भागीरथ भारी, पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
अर्थ– त्रिपुर नामक दुर्दांत राक्षस से युद्ध करके आपने सभी देवताओं पर कृपा करके उनको उस दुष्ट के आतंक से मुक्त किया। राजा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होने के बाद आपने अपनी जटाओं में वास करती मोक्षदायिनी गंगा को जाने की आज्ञा दी। आपके आश्रीवाद से ही राजा भगीरथ की प्रतिज्ञा पूरी हो सकी।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं, सेवक स्तुति करत सदाहीं ।
वेद नाम महिमा तव गाई, अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
अर्थ– आपकी बराबरी करने वाला कोई दानी तीनो लोकों मैं नहीं है। भक्त लोग सदैव ही आपका गुणगान व यशोगान करते हैं। वेदों में भी आपकी महिमा का वर्णन है। परंतु अनादि होने के कारण आपका रहस्य कोई भी नहीं पा सका।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला, जरत सुरासुर भए विहाला ।
कीन्ही दया तहं करी सहाई, नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
अर्थ– समुद्र मंथन से जो ज्वाला रुपी हलाहल निकला उसके ताप से देवता और राक्षस दोनों जलने लगे और और त्राहिमाम करने लगे। तब आपने उस ज्वाला रुपी हलाहल को अपने कंठ मैं स्थान देकर सभी की रक्षा की। हे महादेव, तभी से आपका नाम नीलकंठ पड़ गया।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा , जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।
सहस कमल में हो रहे धारी, कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
अर्थ– लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व श्रीराम ने आपकी वंदना के बाद ही विजयश्री प्राप्त की और विभीषण को लंका का अधिपति बना दिया। जब श्री रामचन्द्रजी सहस्त्र कमलों से आपकी पूजा कर रहे थे तब आपने फूलों में रहकर उनकी परीक्षा ली।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई, कमल नयन पूजन चहं सोई ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर, भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
अर्थ– आपने अपनी माया से एक कमल का फूल छिपा दिया। तब रामचन्द्रजी ने नयनरूपी कमल से पूजा करने की बात सोची। हे भोलेनाथ, इस प्रकार जब आपने रामचन्द्रजी की यह दृढ़ आस्था देखी तब आपने प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान दिया।
जय जय जय अनन्त अविनाशी, करत कृपा सब के घटवासी ।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै, भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
अर्थ– हे देवाधिदेव महादेव आप अनन्त हैं, अनश्वर हैं। आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप सबके हृदय में रहकर उन पर कृपा करते हैं। दुष्ट विचार सदैव मुझे पीड़ित करते हैं और सताते रहते हैं जिससे मैं भ्रमित रहता हूं और मुझे कहीं चैन नहीं मिलता है।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो, येहि अवसर मोहि आन उबारो ।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो, संकट से मोहि आन उबारो ॥
अर्थ– हे नाथ, कृपया मेरी रक्षा कीजिये, ऐसा अनुनय करते हुए मैं आपको पुकार रहा हूं। अब आप ही मुझे संकटों व कष्टो से उबारें। अपने त्रिशूल से मेरे सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश कीजिये और संकट से मेरा उद्धार कर मुझे भवसागर से पार लगाने की कृपा करो कृपानिधान।
मात-पिता भ्राता सब होई, संकट में पूछत नहिं कोई ।
स्वामी एक है आस तुम्हारी, आय हरहु मम संकट भारी ॥
अर्थ– माता, पिता, भाई-बंधु सबके पास होते हैं पर कष्ट और दुखों में कोई साथ नहीं दे पाता। हे स्वामी, बस आप ही हैं जो मेरे कष्टों और संकटों की हर सकते हैं, बस आप ही हैं जो मेरे अंधियारे जीवन मैं प्रकाश कर सकते हैं।
धन निर्धन को देत सदा हीं, जो कोई जांचे सो फल पाहीं ।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी, क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
अर्थ– आप सदैव ही निर्धनों की सहायता करते हैं। आपसे जिस फल की कामना की जाती है वही फल प्राप्त होता है। आपकी पूजा-अर्चना कैसे की जाती है मुझे इस्जा ज्ञान नहीं। अतः मुझसे जो भी भूल-चूक हो उसे क्षमा कर देना।
शंकर हो संकट के नाशन, मंगल कारण विघ्न विनाशन ।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं, शारद नारद शीश नवावैं ॥
अर्थ– हे त्रिनेत्रधारी, आप ही कष्टों को नष्ट करने वाले हैं। सभी शुभ कार्यो को कराने वाले हैं तथा सब विध्न-बाधाओं को दूर करके कल्याण करने वाले हैं। योगी, यति और मुनि सभी आपका स्मरण करते हैं। देवमुनि नारद और देवी सरस्वती (शारदा) भी आपको नमन करते हैं।
नमो नमो जय नमः शिवाय, सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ।
जो यह पाठ करे मन लाई, ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
अर्थ– ‘ॐ नमः शिवाय’ इस पञ्चाक्षर मंत्र का जाप करके भी ब्रह्मा आदि देवता आपकी महिमा का पार नहीं प सके। जो कोई भी सच्चे मन तथा निष्ठा से शिव चालीसा का पाठ करता है, भगवन शिव शम्भू उसकी सहायता कर उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी, पाठ करे सो पावन हारी ।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई, निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
अर्थ– हे कृपानिधान, कर्ज मैं दबा हुआ व्यक्ति भी आपके नामजप से ऋण-मुक्त हो सुख-समृद्धि प्राप्त करता है। पुत्र प्राप्ति की कामना से से आपका पाठ करने वाले व्यक्ति को भी आपकी कृपा से सहज ही पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है।
पण्डित त्रयोदशी को लावे, ध्यान पूर्वक होम करावे ।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा, ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
अर्थ– आपके हर भक्त और श्रद्धालु तथा को प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को विद्वान पण्डित को बुलाकर पूजा तथा हवन करवाना चाहिए। जो भी भक्त सदैव त्रयोदशी का व्रत करता है, उसके शरीर में कोई रोग नहीं रहता और किसी प्रकार का क्लेश भी मन में नहीं रहता।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे, शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ।
जन्म जन्म के पाप नसावे, अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
अर्थ- धूप-दीप और नैवेध से पूजन करके शिवजी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए। इससे जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य शिवलोक में वास करने लगता है अथार्त मुक्त हो जाता है। अयोध्यादासजी कहते हैं कि बस आपसे ही हमारी आशा है कि आप हमारी मनोकामनाएं पूरी करके हमारे दुखों को दूर करें हे महादेव।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
अर्थ- इस शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का चालीस बार प्रतिदिन पाठ करने से भगवान मनोकामना पूर्ण करते हैं। मृगशिर मास कि छ्ठी तिथि हेमंत ऋतु संवत 64 में यह चालीसा रूपी शिव स्तुति लोक कल्याण के लिए पूर्ण हुई।
शिव चालीसा (Shiv Chalisa) के लाभ
मानसिक शांति: शिव चालीसा का पाठ मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है।
सकारात्मक ऊर्जा: यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता बढ़ाता है।
स्वास्थ्य में सुधार: शिव की कृपा से रोगों से मुक्ति मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।
आत्मविश्वास में वृद्धि: शिव चालीसा का पाठ करने से साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
यहां प्रस्तुत शिव चालीसा भगवान शिव की महिमा और उनकी कृपा का गहन वर्णन करता है। इसकी चौपाइयां और दोहे भक्तों के लिए भगवान शिव की आराधना का एक माध्यम हैं, जो मन को शांति और जीवन में सकारात्मकता का संचार करते हैं। शिव चालीसा (Shiv Chalisa) का नियमित पाठ करने से भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम हो सकते हैं।
भक्तगण इसे प्रतिदिन विशेष रूप से सोमवार को श्रद्धापूर्वक पढ़ें और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।
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