Ujjain Mahakal Mandir, महाकाल मंदिर में 24 अप्रैल से गलंतिका बांधी जाएगी, जिसमें भगवान के शीश पर मिट्टी की मटिकियों से शीतल जलधारा प्रवाहित की जाएगी। यह परंपरा वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो माह चलेगी।

Ujjain Mahakal Mandir में गलंतिका की परंपरा,बाबा महाकाल को गर्मी से बचाएगा 11 नदियों का जल
Ujjain Mahakal Mandir में गलंतिका की परंपरा,बाबा महाकाल को गर्मी से बचाएगा 11 नदियों का जल

इस खबर की महत्वपूर्ण बातें

  1. महाकाल मंदिर में 24 अप्रैल से शुरू होगी गलंतिका
  2. महाकाल में गर्मी से राहत के लिए जलधारा प्रवाहित की जाएगी
  3. महाकाल मंदिर में पुरानी परंपरा जारी, क्या यह सही है?

उज्जैन महाकाल मंदिर(Ujjain Mahakal Mandir) में 24 अप्रैल से गलंतिका की परंपरा शुरू हो रही है। इस दौरान भगवान के शीश पर मिट्टी से बनी मटिकियों से शीतल जलधारा प्रवाहित की जाती है, जिससे उन्हें गर्मी के मौसम में ठंडक मिले। यह परंपरा वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होती है और ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो महीनों तक जारी रहती है।

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गलंतिका बांधने का उद्देश्य भगवान शिव को विष के प्रभाव से राहत प्रदान करना है, जो समुद्र मंथन के समय उन्होंने ग्रहण किया था। इस वजह से गर्मी के मौसम में भगवान को ठंडक प्रदान करने के लिए इस परंपरा का पालन किया जाता है। इस दौरान, दिनभर मिट्टी की मटिकियों से भगवान के शीश पर शीतल जलधारा प्रवाहित की जाती है।

मंदिर में गलंतिका के लिए 11 मटिकियों का उपयोग होता है, जिन पर पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना, कावेरी आदि के नाम लिखे जाते हैं। यह मटिकियां चांदी के मुख्य कलश के आसपास बांधी जाती हैं और इनसे भगवान के शीश पर जलधारा प्रवाहित की जाती है।

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यह परंपरा महाकाल मंदिर में प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे श्रद्धालु भगवान शिव को गर्मी के मौसम में ठंडक पहुंचाने के लिए निभाते हैं। इसके साथ ही, भक्तों के लिए यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुभव भी होता है, जिससे वे अपने विश्वास को और मजबूत करते हैं।

पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. गलंतिका कब से शुरू होती है? वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से गलंतिका शुरू होती है और ज्येष्ठ पूर्णिमा तक दो माह तक जारी रहती है।
  2. गलंतिका में कितनी मटिकियां उपयोग होती हैं? गलंतिका में 11 मटिकियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें पवित्र नदियों के नाम लिखे जाते हैं।
  3. गलंतिका का उद्देश्य क्या है? गलंतिका का उद्देश्य भगवान शिव को गर्मी के मौसम में ठंडक प्रदान करना है, विशेष रूप से जब वे समुद्र मंथन के समय विष का पान कर चुके हैं।
  4. जलधारा कैसे प्रवाहित की जाती है? गलंतिका के जरिए मिट्टी की मटिकियों से भगवान के शीश पर शीतल जलधारा प्रवाहित की जाती है।
  5. गलंतिका की परंपरा क्यों महत्वपूर्ण है? गलंतिका की परंपरा भगवान शिव को गर्मी के मौसम में ठंडक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण है, जिससे उन्हें विष के प्रभाव से राहत मिलती है और भक्तों को धार्मिक अनुभव मिलता है।

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