एस.डी. बर्मन (S D Burman) और मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) की जोड़ी ने भारतीय फिल्म संगीत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। दोनों के बीच का रिश्ता केवल पेशेवर नहीं, बल्कि निजी भी था। मजरूह ने बर्मन दा की संगीत की शैली और उनकी सादगी को याद करते हुए कई अनसुने किस्से बताए हैं।
इस खबर की महत्वपूर्ण बातें
- “मजरूह का चौंकाने वाला खुलासा: एस.डी. बर्मन का संगीत स्कूल क्यों नहीं चला!”
- “आपको नहीं पता होगा ये राज! एस.डी. बर्मन और पंचम के बीच का अनकहा किस्सा”
- “दादा बर्मन का संगीत स्कूल – मजरूह ने बताया क्यों कोई दोहरा नहीं पाया”
भारतीय फिल्म संगीत का जिक्र हो और एस.डी. बर्मन (S D Burman) का नाम न आए, यह असंभव है। दादा बर्मन संगीत के एक ऐसे साधक थे, जिन्होंने न केवल भारतीय संगीत को नई पहचान दी, बल्कि अपने बेटे आर.डी. बर्मन (R.D. Burman) को भी संगीत की धारा में ढाला। बर्मन दादा का नाम आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा है।
मजरूह सुल्तानपुरी (Majrooh Sultanpuri) जैसे गीतकारों के साथ उनकी जोड़ी ने कई यादगार गाने दिए। मजरूह साहब ने एक प्रोग्राम में बर्मन दादा के साथ बिताए गए कुछ खास पलों को साझा किया था। मजरूह साहब के अनुसार, दादा बर्मन संगीत के मामले में बहुत अनुशासित थे। वह अपनी धुनों के प्रति बेहद सजग रहते थे, और जब भी उन्हें कोई धुन पसंद नहीं आती थी, तो वह तुरंत मना कर देते थे।
पंचम के लिए दादा का प्यार
बर्मन दादा का अपने बेटे आर.डी. बर्मन (R.D. Burman), जिन्हें वह प्यार से “पंचम” कहते थे, के प्रति खास लगाव था। मजरूह साहब बताते हैं कि एक बार उन्होंने दादा से पूछा कि वह अपने बेटे को पंचम क्यों बुलाते हैं। इस पर दादा ने कहा कि जब आर.डी. छोटे थे और रोते थे, तो उनका रोना पंचम सुर में होता था। इसलिए उनका नाम पंचम रखा गया।
पंचम को बचपन से ही संगीत का शौक था। उन्होंने सरोद, तबला और माउथ ऑर्गन में भी महारत हासिल की थी। लेकिन उनका झुकाव मॉडर्न म्यूजिक की ओर अधिक था। दादा बर्मन को यह बात समझ में नहीं आती थी, इसलिए उन्होंने मजरूह साहब से कहा, “मुजरूह, तुम पंचम को समझाओ। यह क्या नीग्रो के बीच में बैठकर ढों ढों करता रहता है।”
बर्मन दादा और मजरूह की अनमोल जोड़ी
बर्मन दादा और मजरूह साहब की जोड़ी ने कई यादगार गाने दिए। 1957 में आई फिल्म पेईंग गेस्ट का गाना “छोड़ दो आंचल ज़माना क्या कहेगा” दोनों के सहयोग का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह गीत नूतन और देव आनंद पर फिल्माया गया था और आशा भोसले तथा किशोर कुमार द्वारा गाया गया था। बर्मन दादा ने इस गाने के लिए एक खास मीटर तैयार किया था, जिस पर मजरूह साहब ने गीत लिखा।
‘अभिमान’ का किस्सा
1973 में आई फिल्म अभिमान बर्मन दादा और मजरूह साहब के आखिरी सहयोग में से एक थी। इस फिल्म के संगीत ने खूब लोकप्रियता बटोरी और बर्मन दादा को फिल्मफेयर बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर अवॉर्ड भी मिला। मजरूह साहब ने एक किस्सा साझा किया कि कैसे दादा ने उन्हें बुलाकर कहा, “अभिमान के गानों से हमें बहुत इज्ज़त मिली है।”
दादा बर्मन का संगीत स्कूल
मजरूह सुल्तानपुरी का कहना था कि एस.डी. बर्मन ने संगीत की एक ऐसी दुनिया बनाई थी, जिसे दोहराना नामुमकिन है। लोग उनकी धुनों की नकल करने की कोशिश करते हैं, लेकिन बर्मन दादा का संगीत स्कूल उनके साथ ही चला गया। मजरूह साहब का कहना था, “मैं आज भी बर्मन दादा को याद करता हूँ। उनका भोलापन, हंसी-मज़ाक और संगीत की गहराई हमेशा याद रहेगी।”
पूछे जाने वाले प्रश्न
1.एस.डी. बर्मन कौन थे?
एस.डी. बर्मन (S D Burman) एक प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार थे, जिन्होंने कई यादगार फिल्मी धुनें बनाई थीं।
2.मजरूह सुल्तानपुरी और एस.डी. बर्मन का संबंध कैसा था?
मजरूह सुल्तानपुरी और एस.डी. बर्मन का रिश्ता न केवल पेशेवर था, बल्कि दोनों के बीच गहरी दोस्ती भी थी।
3.एस.डी. बर्मन के बेटे पंचम दा कौन थे?
पंचम दा, आर.डी. बर्मन, एस.डी. बर्मन के बेटे और मशहूर संगीतकार थे।
4.एस.डी. बर्मन का सबसे लोकप्रिय गीत कौन सा है?
एस.डी. बर्मन के कई लोकप्रिय गाने हैं, लेकिन “छोड़ दो आंचल” और “अभिमान” के गाने खास हैं।
5.मजरूह सुल्तानपुरी ने एस.डी. बर्मन के साथ किन फिल्मों में काम किया?
मजरूह सुल्तानपुरी और एस.डी. बर्मन ने पेईंग गेस्ट और अभिमान जैसी फिल्मों में साथ काम किया।
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