1907 में इंदौर के गुमाश्ता नगर क्षेत्र के वीरान जंगल में अल्हड़सिंह भारद्वाज ने पहलवानी और हनुमानजी की उपासना के लिए एक छोटा-सा अखाड़ा और मंदिर स्थापित किया। यह रणजीत हनुमान मंदिर (Ranjit Hanuman temple) आज शहर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है।

Ranjit hanuman temple का इतिहास जो शायद ही किसी ने सुना हो!
Ranjit hanuman temple का इतिहास जो शायद ही किसी ने सुना हो!

इस खबर की महत्वपूर्ण बातें

  1. इंदौर के रणजीत हनुमान मंदिर का अद्भुत इतिहास और उसकी स्थापना
  2. इंदौर के वीरान जंगल में कैसे अस्तित्व में आया रणजीत हनुमान मंदिर? जानिए रहस्य!
  3. क्या रणजीत हनुमान मंदिर का असली इतिहास छिपाया गया है? जानिए सच्चाई!

इंदौर शहर में स्थित रणजीत हनुमान मंदिर (Ranjit Hanuman temple) की कहानी एक सदी से भी पुरानी है। वर्ष 1907 की बात है, जब गुमाश्ता नगर क्षेत्र अभी बसाहट के शुरुआती चरणों में था। तब इस क्षेत्र को घने जंगल और वीरान इलाका माना जाता था। इसी क्षेत्र में अल्हड़सिंह भारद्वाज नाम के एक पहलवान रहते थे, जो हनुमानजी के परम उपासक थे। उनकी जीवनशैली में पहलवानी का विशेष स्थान था, और वे अपने भगवान हनुमान के प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखते थे।

अल्हड़सिंह ने वीरान जंगल में एक छोटे से स्थान को चुना, जहां उन्होंने पहलवानी के अभ्यास के लिए एक अखाड़ा बनाने का निश्चय किया। इसी स्थान पर उन्होंने पतरे की ओट लगाकर हनुमानजी की एक प्रतिमा स्थापित की, जो आगे चलकर रणजीत हनुमान मंदिर के रूप में विकसित हुआ। यह मंदिर उस समय का एक अनोखा स्थान बन गया, जहां लोग हनुमानजी की पूजा-अर्चना के साथ-साथ पहलवानी का अभ्यास भी करते थे।

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वर्तमान में, अल्हड़सिंह भारद्वाज के पोते, विजयसिंह भारद्वाज, मंदिर की देखरेख करते हैं और वे बताते हैं कि इस मंदिर से जुड़ी कई अद्भुत और प्रेरणादायक कहानियाँ हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर का नाम ‘Ranjit Hanuman temple’ इसलिए पड़ा क्योंकि हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करने के बाद इस स्थान को जीतने वाला कोई नहीं रहा। लोगों का मानना है कि यहां पर हनुमानजी की कृपा से हर संघर्ष में विजय प्राप्त होती है।

यह मंदिर विशेष रूप से रामनवमी और हनुमान जयंती के अवसर पर बहुत आकर्षक बन जाता है। इन दिनों में यहां विशेष श्रृंगार, अनुष्ठान, पूजा-पाठ और आरती का आयोजन होता है। मंदिर को फूलों और दीयों से सजाया जाता है, और भव्य महाप्रसाद का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

यह मंदिर इंदौर के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। यहां आने वाले भक्तों का मानना है कि हनुमानजी की कृपा से उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र अब पूरी तरह विकसित हो चुका है, लेकिन इस स्थान का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व आज भी उतना ही जीवंत है जितना कि 1907 में था।

इस मंदिर से जुड़े अनेक किस्से और कहानियाँ समय के साथ जनमानस में गहरी छाप छोड़ते आए हैं। रणजीत हनुमान मंदिर (Ranjit Hanuman temple) आज भी भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है।

पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. Ranjit Hanuman temple की स्थापना कब हुई थी? रणजीत हनुमान मंदिर की स्थापना वर्ष 1907 में हुई थी।
  2. इस मंदिर का नाम रणजीत हनुमान क्यों पड़ा? इस मंदिर का नाम ‘रणजीत हनुमान’ इसलिए पड़ा क्योंकि हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करने के बाद इस स्थान को जीतने वाला कोई नहीं रहा।
  3. मंदिर की विशेषताएँ क्या हैं? यहां रामनवमी और हनुमान जयंती पर विशेष श्रृंगार, अनुष्ठान, पूजा-पाठ और आरती का आयोजन होता है।
  4. मंदिर का इतिहास क्या है? 1907 में अल्हड़सिंह भारद्वाज ने वीरान जंगल में हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की थी, जिससे यह मंदिर अस्तित्व में आया।
  5. क्या मंदिर में कोई विशेष आयोजन होते हैं? जी हाँ, रामनवमी और हनुमान जयंती के अवसर पर यहां विशेष पूजा और महाप्रसाद का आयोजन होता है।

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