महाकाल की भस्मारती के 15 गुप्त रहस्य उज्जैन से - आप भी जानिए

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महाकाल मंदिर में दिन में छह बार आरती होती है, जिसमें सबसे खास मानी जाती है भस्म आरती। 

सबसे पहले भस्म आरती होती है। दूसरी आरती में भगवान शिव घटाटोप स्वरूप में होते हैं। तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी का रूप दिया जाता है। चौथी आरती में भगवान शिव शेषनाग अवतार में होते हैं। पांचवीं आरती में शिव को दुल्हे का रूप दिया जाता है और छठी आरती शयन आरती होती है जिसमें शिव अपने वास्तविक स्वरूप में होते हैं। 

भस्म आरती यहां सुबह 4 बजे होती है। 

इस आरती की विशेषता यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। 

इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग करनी होती है। 

इस आरती में महिलाओं के लिए साड़ी पहनना अनिवार्य है। 

जब शिवलिंग पर भस्म चढ़ाई जाती है, उस समय महिलाओं को घूंघट करने के लिए कहा जाता है। 

मान्यता है कि उस समय भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते हैं और इस रूप के दर्शन महिलाएं नहीं कर सकतीं। 

पुरुषों को भी इस आरती को देखने के लिए केवल धोती पहननी होती है। धोती साफ-सुथरी और सूती होनी चाहिए। 

पुरुष इस आरती को केवल देख सकते हैं, और इसे करने का अधिकार केवल पुजारियों को होता है। 

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, दूषण नामक एक राक्षस की वजह से अवंतिका में आतंक था। नगरवासियों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसे भस्म कर दिया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया। तत्पश्चात, गांव वालों के आग्रह पर शिवजी वहीं महाकाल के रूप में बस गए। इसी कारण इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रखा गया और शिवलिंग की भस्म से आरती की जाने लगी। 

ऐसा भी कहा जाता है कि यहां श्मशान में जलने वाली सुबह की पहली चिता से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है, परंतु इसकी पुष्टि नहीं हो सकती। 

यह भी कहा जाता है कि इस भस्म के लिए पहले से लोग मंदिर में पंजीकरण कराते हैं और मृत्यु के बाद उनकी भस्म से भगवान शिव का श्रृंगार किया जाता है। 

हालांकि यह भी कहा जाता है कि श्रौत, स्मार्त और लौकिक तीन प्रकार की भस्म होती है। श्रुति की विधि से यज्ञ किया हो वह भस्म श्रौत है, स्मृति की विधि से यज्ञ किया हो वह स्मार्त भस्म है और कंडे को जलाकर तैयार की गई भस्म लौकिक भस्म होती है। विरजा हवन की भस्म सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। 

हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला और गाय के गोबर को जलाकर भस्म बनाई जाती है। इस भस्म की सामग्री को छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्म को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्म नागा साधुओं का वस्त्र होती है। इसी तरह की भस्म से आरती भी होती है।