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सबसे पहले भस्म आरती होती है। दूसरी आरती में भगवान शिव घटाटोप स्वरूप में होते हैं। तीसरी आरती में शिवलिंग को हनुमान जी का रूप दिया जाता है। चौथी आरती में भगवान शिव शेषनाग अवतार में होते हैं। पांचवीं आरती में शिव को दुल्हे का रूप दिया जाता है और छठी आरती शयन आरती होती है जिसमें शिव अपने वास्तविक स्वरूप में होते हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, दूषण नामक एक राक्षस की वजह से अवंतिका में आतंक था। नगरवासियों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसे भस्म कर दिया और उसकी राख से अपना श्रृंगार किया। तत्पश्चात, गांव वालों के आग्रह पर शिवजी वहीं महाकाल के रूप में बस गए। इसी कारण इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रखा गया और शिवलिंग की भस्म से आरती की जाने लगी।
हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला और गाय के गोबर को जलाकर भस्म बनाई जाती है। इस भस्म की सामग्री को छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्म को समय-समय पर लगाया जाता है। यही भस्म नागा साधुओं का वस्त्र होती है। इसी तरह की भस्म से आरती भी होती है।