Mythological Stories : रामभक्ति पाने के लिए काकभुशुष्डि को लेने पड़े थे कई जन्म,महाकाल ने दिया था शाप?

एस.ऐन. मिश्रा उज्जैन ,इस कथा में एक साधक के बारे में बताया गया है, जिसने महाकाल के मंदिर में ध्यान लगाया था। उसके गुरु के आगमन पर भी उसने सम्मान नहीं दिखाया, जिससे भगवान शिव नाराज हो गए और उसे सांप बना दिया। बाद में, कई जन्मों के बाद उसने रामभक्ति प्राप्त की।

Mythological stories : रामभक्ति पाने के लिए काकभुशुष्डि को लेने पड़े थे कई जन्म,महाकाल ने दिया था शाप?
Mythological stories : रामभक्ति पाने के लिए काकभुशुष्डि को लेने पड़े थे कई जन्म,महाकाल ने दिया था शाप?

इस खबर की महत्वपूर्ण बातें

  1. महाकाल के शाप से बनना पड़ा सांप, फिर मिली रामभक्ति
  2. महाकाल के क्रोध को गुरु ने इस तरह किया था शांत
  3. रामभक्ति पाने के लिए काकभुशुष्डि को लेने पड़े थे कई जन्म,महाकाल ने दिया था शाप

त्रुपरारि यानी भगवान शिव आशुतोष हैं। यानी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शास्त्र कहते हैं कि शिव जल, धतूरा, भांग अथवा गाल बजा देने से ही प्रसन्न होकर वर देते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव कुपित भी हो जाते हैं। ऐसी कई कथाएं हमारे शास्त्रों में उल्लेखित हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।

एक समय की बात है कि एक मानव उज्जैन के महाकाल मंदिर में बैठ ध्यान लगा रहा था। इसी दौरान उसके गुरु वहां पहुंचे। मानव गुरु के आने पर भी खड़ा नहीं हुआ और बैठा रहा। उसकी यह धृष्टता देख भगवान शिव यानी महाकाल क्रोधित हो गए। उन्होंने उस मानव को शाप दे दिया। कहा कि हे दुष्ट तूने तेरे गुरु का अपमान किया है। तू तेरे गुरु के आगमन पर भी जड़ बना रहा। यह कृत्य तो कोई अजगर अथवा सांप करता है। इसलिए तू अगले जन्म में सर्प बन जाएगा।

यह शाप सुनते ही मानव थरथर कांपने लगा और अपने गुरु की शरण में चला गया। दयावान गुरु अपने शिष्य की यह दशा देख द्रवित हो गए। इसके बाद भगवान शिव को प्रसन्न करने के जतन किए। फिर यह स्तुति गायी…।

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

यह स्तुति सुनकर भगवान का क्रोध शांत हो गया। वे प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा कि गुरु द्वारा सच्चे मन से कई गई प्रार्थना के कारण मेरा क्रोध शांत हो गया है। मगर फिर भी मेरा शाप खाली नहीं जाएगा। किंतु हे मानव तेरे लिए गुरु ने मेरी प्रार्थना की है। इसलिए अलग अलग प्रजातियों में जन्म लेने के बाद तुझे राम भक्ति मिलेगी। और अंत में काकभुशुष्डि बनकर मेरे आराध्य श्री राम की कथा सबको सुनाएगा। हुआ भी ऐसा ही। उस मानव को कई जन्म लेने पड़े और आखिर में जाकर उसे रामभक्ति प्राप्त हुई।

इस कथा के प्रमाण आज भी महाकाल मंदिर मौजूद हैं। मान्यता है कि आज भी कौए के रूप में वही मानव रोजाना महाकाल दर्शन के लिए उज्जैन आते हैं। महाकाल मंदिर के गर्भगृह में आज भी काकभुशुष्डि दर्शन के लिए आते हैं। राजाधिराज महाकाल के गर्भगृह में आज भी उनकी गुफा मौजूद है। भक्त यहां इस गुफा के दर्शन कर सकते हैं। यह कथा तुलसीदास रचित श्री रामचरित मानस के उत्तरकांड में भी उपलब्ध है। विभिन्न चौपाइयों और दोहों, छंदों के माध्यम से तुलसीदास ने अत्यंत ही सुंदर शब्दों में इस कथा का वर्णन किया है। कथा के विषय में और अधिक जानने के लिए पाठकगण रामचरितमानस का पाठ कर सकते हैं

पूछे जाने वाले प्रश्न 

  1. महाकाल मंदिर में काकभुशुष्डि कौन हैं? काकभुशुष्डि एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक मानव जो महाकाल मंदिर में ध्यान कर रहा था, उसे सांप का रूप धारण करना पड़ा। इसके बाद उसकी आत्मा ने राम की भक्ति में परिवर्तित हो जाने के बाद उसे काकभुशुष्डि कहा जाता है।
  2. क्या महाकाल मंदिर में आज भी काकभुशुष्डि की पूजा होती है? हां, महाकाल मंदिर में आज भी काकभुशुष्डि की पूजा होती है। उसकी प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया है और उसे भक्तों के द्वारा पूजा जाता है।
  3. क्या श्री रामचरित मानस में काकभुशुष्डि का उल्लेख है? हां, श्री तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘श्री रामचरित मानस’ में काकभुशुष्डि का उल्लेख है। इस कथा को उत्तरकांड में सुंदर ढंग से वर्णित किया गया है।
  4. क्या काकभुशुष्डि की कथा को अधिक विस्तार से समझने के लिए कौनसी पुस्तक पढ़ी जा सकती है? काकभुशुष्डि की कथा को अधिक विस्तार से समझने के लिए ‘श्री रामचरित मानस’ का अध्ययन किया जा सकता है। इस पुस्तक में तुलसीदास जी ने इस कथा को बहुत ही सुंदर ढंग से विवरणित किया है।

यदि आपका कोई अन्य प्रश्न है, तो इस पौराणिक कथाओं के लेखक से संपर्क करें।

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